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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन २३५ को नए परिप्रेक्ष्य में जनता के समक्ष प्रस्तुत किया गया है । तात्त्विक ज्ञान की दृष्टि से भी ये दोनों पुस्तकें अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बन पड़ी हैं। इन पुस्तकों में सन् ७६ से ७८ तक के प्रवचन संकलित हैं । ये दोनों पुस्तकें धर्म और अध्यात्म की नई दिशाएं उद्घाटित कर हरेक व्यक्ति को मंजिल की ओर ले जाने में सक्षम हैं । इन दोनों पुस्तकों का संपादन साध्वीश्री जिनप्रभाजी ने किया है । मनहंसा मोती चुगे साहित्य प्रकाश का रूपांतर है । अन्तः प्रकाश को प्रकट करने वाली " मनहंसा मोती चुगे" पुस्तक योगक्षेम वर्ष के प्रवचनों की श्रृंखला में पांचवीं और अन्तिम पुस्तक है । इसमें ४६ प्रवचनों का संकलन है । प्रारम्भ के छह प्रवचन नमस्कार मंत्र का दार्शनिक विवेचन प्रस्तुत करते हैं । कुछ लेख जीवन के व्यावहारिक विषयों का प्रशिक्षण देने वाले हैं तो कुछ अणुव्रत एवं प्रेक्षाध्यान की पृष्ठभूमि को अभिव्यक्त करते हैं । कुछ अध्यात्म की नई दिशाएं उद्घाटित करते हैं तो कुछ समाज की बुराइयों की ओर भी इंगित करते हैं । कुल मिलाकर इस कृति में पाठक को मिलेगा सत्य का साक्षात्कार तथा जीवन को सजाने-संवारने के मौलिक सूत्र । पुस्तक का नाम जितना आकर्षक एवं नवीन है, तथ्यों का प्रतिपादन भी उतनी ही सरल एवं नवीन शैली में हुआ है । व्यक्तित्व रूपान्तरण एवं विधायक दृष्टिकोण का निर्माण करने के इच्छुक पाठकों के लिए यह कृति दीपशिखा का कार्य करेगी । महामनस्वी आचार्यश्री कालूगणी : जीवनवृत्त साहित्यिक विधाओं में जीवनी - साहित्य का अपना महत्त्वपूर्ण स्थान है । जीवनी साहित्य पढ़ने में तो सरस होता ही है, साथ ही जीवन्त प्रेरणा भी देता है । आचार्य तुलसी ने अपने दीक्षागुरु के जीवन-प्रसंग को संस्मरणात्मक शैली में लिखा है, जिसका नाम है- 'महामनस्वी आचार्यश्री कालूगणी जीवनवृत्त ।' कालूगणी का जीवन ज्ञान, दर्शन और चारित्र की त्रिवेणी में अभिस्नात था । उनका बाह्य व्यक्तित्व जितना आकर्षक और चुम्बकीय था, आंतरिक व्यक्तित्व उससे हजार गुणा अधिक निर्मल और पवित्र था। वे व्यक्तित्व निर्माता थे । तेरापन्थ में उन्होंने सैकड़ों व्यक्तित्वों का निर्माण किया । यही कारण है कि वे तेरापन्थ धर्मसंघ को आचार्य तुलसी जैसा महनीय एवं ऊर्जस्वल व्यक्तित्व दे पाए । इस पुस्तक में आचार्यश्री ने सर्वत्र इस बात का ध्यान रखा है कि भाषा कहीं जटिल नहीं होने पाए। इसके अध्याय भी इतने छोटे हैं कि Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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