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आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण
आचार्य तुलसी के चिन्तन में भारत की आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक चेतना प्रतिबिम्बित है, इसलिए उनके प्रवचन अध्यात्म की परिक्रमा करते रहते हैं । विविध विषयों से सम्बन्धित ये ८३ प्रवचन लोगों के आंतरिक शक्ति-जागरण में निमित्त बन सकेंगे तथा मनुष्य के खोए देवत्व को पुन: स्थापित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा कर पाएंगे।
___ अष्टाचार की आधारशिलाएं
मन में उत्पन्न विचार जब भाषा का परिधान पहनकर जनता के समक्ष उपस्थित होते हैं, तब वे प्रवचन, लेख या निबन्ध का रूप धारण कर लेते हैं । भिन्न-भिन्न विषयों पर आचार्य तुलसी की चिन्तनधारा कभी मौखिक रूप से तो कभी लिखित रूप से जनता के समक्ष अभिव्यक्त होती रही है। 'भ्रष्टाचार की आधारशिलाएं' उनका ऐसा कालजयी हस्ताक्षर है, जिसकी उपयोगिता कभी धूमिल नहीं हो सकती। क्योंकि हर युग में भ्रष्टाचार अपना रूप बदलता है और विविध रूपों में अपना प्रभाव बताता है।
इस आलेख में समाज, राष्ट्र एवं व्यक्तिगत जीवन में नैतिक मूल्यों की स्थापना एवं उसकी उपयोगिता पर खुलकर चर्चा हुई है। समाज एवं देश में जो जड़ता है, भ्रष्टाचार है उसे दूर कर सुन्दर समाज की कल्पना का चित्र इस आलेख में प्रस्तुत किया गया है । अतः यह पुस्तिका राष्ट्र को संवारने, समाज को दिशादर्शन देने एवं व्यक्ति को नई सोच देने में समर्थ
मंजिल की ओर, भाग-१.२ मंजिल की खोज हर व्यक्ति को अभीष्ट है पर उसके लिए कुशलमार्गदर्शक, सही राह तथा सही चाह की आवश्यकता रहती है । 'मंजिल की ओर' भाग-१,२ सचमुच मंजिल की ओर ले जाने वाली महत्त्वपूर्ण कृतियां हैं । ये दोनों पुस्तकें विवेक-जागृत कराने में मार्गदर्शक का कार्य करती हैं। आचार्य तुलसी कुशल प्रवचनकार हैं। उनके प्रवचन केवल औपचारिक नहीं, अपितु अनुभव की गहराइयां लिए हुए होते हैं, इसीलिए उनके प्रवचन में एक सामान्य व्यक्ति जितना आनन्दविभोर होता है, उतना ही एक विद्वान् भी। बच्चे यदि प्रसन्न होते हैं तो वृद्ध भी भाव-विभोर हो उठते हैं।
'मंजिल की ओर, भाग-१' में १०४ तथा द्वितीय भाग में ८८ प्रवचनों का संकलन है। समाज, धर्म, नीति, राजनीति आदि विविध विषयों से सम्बन्धित आलेख इनमें समाविष्ट हैं। इन दोनों पुस्तकों में आगम के अनेक सूक्तों तथा आख्यानों की सरल, सुबोध एवं सरस शैली में व्याख्या हुई है।
'तीन लोक से मथुरा न्यारी' इस लोकोक्ति के पीछे छिपे नए इतिहास
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