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________________ २३२ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण हैं कि इस कृति के माध्यम से पाठक सत्य की राह में गतिशील बनेंगे और स्वयं सत्य का साक्षात्कार कर सकेंगे। बैसाखियां विश्वास की ___ आज के यांत्रिक युग में मानव जिस भाग-दौड़ की जिंदगी जी रहा है, उसमें ऐसे उद्बोधनों की अपेक्षा है, जिसमें संक्षेप में गंभीर एवं उपयोगी तत्त्व का निरूपण हो । 'बैसाखियां विश्वास की' पुस्तक में लेखक ने गागर में सागर भरने का प्रयत्न किया है । अतः यह पुस्तक उन लोगों के लिए विशेष उपयोगी है, जिनके पास समय की समस्या है। आज देश में ऐसे धर्माचार्यों की संख्या नगण्य है, जो व्यक्ति, समाज और राष्ट्र की समस्याओं पर चिन्तन करते हैं और समस्या का मूल पकड़कर उसको समाहित करने का प्रयत्न करते हैं। यह पुस्तक इस बात की साक्षी है कि इसमें विविध समस्याओं को उठाकर उसका आधुनिक संदर्भ में समाधान दिया गया है। . इस कृति में राष्ट्रीय, सामाजिक एवं व्यक्तिगत जीवन में नैतिक मूल्यों की प्रतिष्ठा करने की बात बार-बार दोहरायी गयी है । आज जनजीवन में जो अनैतिकता, अप्रामाणिकता, चरित्रहीनता और भ्रष्टाचार फैलता जा रहा है, उसे अणुव्रत के माध्यम से मिटाकर व्यक्ति के जीवन को सृजनात्मक एवं रचनात्मक रूप में बदलने का आह्वान किया गया है। इसके अधिकांश लेख सम-सामयिक हैं। पुस्तक में समाविष्ट प्रायः सभी शीर्षक आकर्षक एवं रहस्यमय हैं। शीर्षक पढ़कर ही पाठक लेख पढ़ने के लोभ का संवरण नहीं कर सकता। जैसे-'सपना : एक नागरिक का, एक नेता का', 'देश की बागडोर थामने वाले हाथ' 'फूट आईने की या आसपास की' आदि । आचार्य तुलसी ने अपने जीवन से आत्मविश्वास की एक नई मशाल प्रस्तुत की है। यही कारण है कि उनके जीवन के शब्दकोश में असम्भव जैसा कोई शब्द है ही नहीं। उनके लेखों में आत्मविश्वास की जो ज्योति विकीर्ण हुई है, वह पग-पग पर देखी जा सकती है। ये लेख निराशा से प्रताड़ित व्यक्ति में भी नयी आशा का संचार करने वाले हैं। आचार्य तुलसी स्वयं इस पुस्तक के प्रयोजन को स्पष्ट करते हुए कहते हैं---"अनैतिकता बढ़ रही है, यह चिन्ता का विषय है। इससे भी बड़ी चिन्ता है, नैतिक मूल्यों के प्रति विश्वास समाप्त होता जा रहा है । लोकजीवन में उस विश्वास को उच्छ्वसित रखने के लिए समय-समय पर कुछ छोटे-छोटे आलेख लिखे गए। उन्हीं आलेखों का संकलन है-बैसाखियां विश्वास की। इस संकलन को पढ़कर कुछ लोग भी यदि नैतिक मूल्यों के प्रति Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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