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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन चेतना को अध्यात्म की ओर उन्मुख किया जाए । "सुधरे व्यक्ति, समाज व्यक्ति से, राष्ट्र स्वयं सुधरेगा" आचार्यश्री द्वारा दिया गया यह उद्घोष पुस्तक के नाम की सार्थकता प्रकट करता है, जैसे बूंद-बूंद से घट भरता है, वैसे ही व्यक्ति-सुधार से समाज, राष्ट्र एवं विश्व का सुधार अवश्यंभावी है । लगभग प्रवचन जैन आगमों की परिक्रमा करते हुए प्रतीत होते हैं, अतः इनको महावीर वाणी का आधुनिक प्रस्तुतीकरण कहा जा सकता है । इसमें भृगुपुरोहित आदि आगमिक आख्यानों के माध्यम से त्याग, संयम, अनासक्ति और सादगी आदि भावों को जागृत करने की प्रेरणा दी गयी है । पुस्तक में समाविष्ट आध्यात्मिक सामग्री इतनी सरल एवं सरस शैली में गुम्फित है कि पाठक कभी भी इसे पढ़कर अपने अशांत मन को शांति की राहों पर अग्रसर कर सकता है । संपादिका महाश्रमणी साध्वीप्रमुखाजी का विश्वास भी इन शब्दों को दोहराता है कि "जिस प्रकार एक-एक बूंद को सोखता सहेजता माटी का घड़ा एक दिन पूरा भर जाता है, वैसे ही आचार्य प्रवर के उपदेशामृत की इन बूंदों को पीते-पीते हमारे जीवन का घट भी भर जाएगा ।" इसके प्रथम भाग में ५३ तथा द्वितीय भाग में ५१ प्रवचनों का समाहार है । प्रवचन - पाथेय की श्रृंखला में भी ये भाग १ एवं भाग २ के नाम से प्रसिद्ध हैं । २३१ बूंद भी : लहर भी कथा वह माध्यम है, जिसके द्वारा आम जीवन से जुड़ी बात सहज और सरल ढंग से कही जा सकती है । कथा सुनने में जितनी सुखद है, समझने में उतनी ही सहज होती है । सुप्त चैतन्य के जागरण में कथा का प्रभाव विलक्षण है | आचार्य तुलसी का यह कथा - संकलन जीवन-मूल्यों एवं नैतिक प्रेरणाओं से संवलित है । ऐतिहासिक, पौराणिक, काल्पनिक, सामाजिक एवं आगमिक कथाओं से युक्त यह कथाग्रंथ जीवन के समग्र परिवेश को प्रस्तुति देने वाला है । ये कथाएं लोक-संस्कृति को उजागर करने वाली तथा नई प्रेरणा एवं आदर्श भरने वाली हैं । मानव को मानव होने का बार-बार अहसास करवाकर व्यस्त जीवन में भी अध्यात्म की ओर प्रेरित करती हैं । प्रस्तुत कहानी-संग्रह आज की कथाओं की भांति केवल भावनाओं को जगाने वाला या सस्ता प्रेम-प्रदर्शन करने वाला नहीं, अपितु त्याग, स्नेह, सहानुभूति, स्वावलम्बन और सहिष्णुता का स्पर्श करने वाला है । आचार्यश्री द्वारा कही गयी कथाओं को शब्दों का परिधान महाश्रमणी साध्वीप्रमुखा कनकप्रभाजी ने दिया है। वे इस पुस्तक के बारे में आश्वस्त Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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