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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
दीया जले अगम का 'दीया जले अगम का' ठाणं सूत्र के आधार पर दिए गए प्रवचनों का संकलन है। यह योगक्षेम वर्ष में हुए प्रवचन-साहित्य की श्रृंखला में चौथा पुष्प है। इस पुस्तक के ४१ आलेखों में सैद्धांतिक, दार्शनिक, व्यावहारिक, मनोवैज्ञानिक आदि अनेक दृष्टियों से नए तथ्य प्रकट हुए हैं। आचार्य तुलसी के शब्दों में – “इस पुस्तक में कहीं धर्म और राजनीति की चर्चा है तो कहीं पर्यावरण-विज्ञान का प्रतिपादन है, कहीं क्रियावाद और अक्रियावाद जैसे दार्शनिक विषय हैं तो कहीं स्वास्थ्य की आचार संहिता है। कहीं चक्षुष्मान का स्वरूपबोध है तो कहीं व्यक्तित्व की कसौटियों का निर्धारण है । कहीं अहिंसा की मीमांसा है तो कहीं मरने की कला का अवबोध है। कुल मिलाकर मुझे लगा कि इस पुस्तक की सामग्री जीवन को अनेक कोणों से समझने में सहयोगी बन सकती है। महावीर-वाणी के आधार पर प्रज्वलित यह अगम का दीया चेतना की सत्ता को आवृत करने वाले अंधेरे से लड़ता रहे, यही इस पुस्तक के संकलन, संपादन और प्रकाशन की सार्थकता है।"
प्रस्तुत कृति निषेधात्मक भावों के स्थान पर विधायक भाव, भौतिक शक्तियों के स्थान पर आध्यात्मिक शक्तियों का साक्षात्कार कराने में सार्थक भूमिका निभाती है । इसके आलेख हैवान से इन्सान तथा इन्सान से बेहतर इन्सान बनाने की दिशा में अपना सफर जारी रखेंगे, ऐसा विश्वास है ।
दोनों हाथ : एक साथ आचार्य तुलसी ने अपने आचार्यकाल में नारी-जागरण के अनेक प्रयत्न किए हैं। उनका मानना है कि स्त्री को उपेक्षा या संकीर्ण दृष्टि से देखना रूढ़िगत मानसिकता का द्योतक है। महिला जाति को दिशादर्शन देने के साथ-साथ उन्होंने युवाशक्ति को भी प्रतिबोध देकर उसे रचनात्मक दिशा में अग्रसर किया है। दोनों हाथ : एक साथ' पुस्तक में आचार्य तुलसी द्वारा समय-समय पर युवकों एवं महिलाओं को सम्बोधित कर लिखे गए लेखों का संकलन है।
पुस्तक के प्रथम खंड में २३ निबंध नारी-शक्ति से सम्बन्धित हैं । तथा दूसरे खंड के २२ निबंधों में युवाशक्ति को दिए गए प्रेरक उद्बोधन समाविष्ट हैं।
प्रथम खंड में नारी जीवन से जुड़ी पर्दाप्रथा, दहेज, अशिक्षा जैसी विसंगतियों एवं विकृतियों पर करारा प्रहार किया गया है। नारी की
आंतरिक शक्ति को जागृत करने की प्रेरणा देते हुए लेखक यहां तक कह देते हैं - "समाज में लक्ष्मी और सरस्वती का जितना महत्त्व है, दुर्गा का भी
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