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________________ २२० आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण उससे कम महत्त्व नहीं है । केवल लक्ष्मी और सरस्वती बनने से महिलाओं का काम नहीं चलेगा, उन्हें दुर्गा भी बनना होगा ।" इस खंड के सभी लेख नारी - जीवन के विभिन्न पहलुओं को छूने वाले हैं तथा उसकी सोयी अस्मिता को जगाने वाले हैं । यह पुस्तक स्वस्थ समाज - संरचना में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करती है । पुस्तक में प्रतिपादित क्रांतिकारी विचार आने वाली शताब्दियों तक भी युवापीढ़ी को दिशादर्शन देते रहेंगे, ऐसा विश्वास है । धर्म : एक कसौटी : एक रेखा भारतीय संस्कृति के कण-कण में धर्म की चर्चा है, इसलिए यहां अनेक धर्म और धर्माचार्य प्रादुर्भूत हुए । समय के अंतराल में धर्म जैसे निखालिस तत्त्व में भी कुछ अन्यथा तत्त्वों का समावेश हो जाता है, इसलिए उसकी कसौटी की आवश्यकता हो जाती है । आचार्य तुलसी ने धर्म को बुद्धि, तर्क और श्रद्धा की कसौटी पर कसकर उसका शुद्ध रूप जनता के समक्ष प्रस्तुत किया है । 'धर्म : एक कसौटी : एक रेखा' पुस्तक में उन्होंने इसी परिप्रेक्ष्य में चिंतन किया है । इसकी प्रस्तुति में वे कहते हैं- "धर्म की कसौटी है- मानवीय एकता की अनुभूति । हृदय और मस्तिष्क पर अभेद की रेखा खचित होते ही धर्म परीक्षित हो जाता है । अहिंसा का आधार अभेद बुद्धि है । मानवीय एकता की अनुभूति इसी की एक लय है । इसी लय में मैंने अनेक समस्याओं का समाधान देखा है ।" सम्पूर्ण पुस्तक तीन अध्यायों में विभक्त है । प्रथम अध्याय में अध्यात्म के विविध परिप्रेक्ष्यों की चर्चा है । दूसरा अध्याय जैन धर्म से संबंधित है तथा तीसरा अध्याय 'विविधा' के रूप में है । इसके प्रथम खंड में 'पत्र एवं प्रतिनिधि' शीर्षक के अन्तर्गत अनेक शहरों में हुई पत्रकार वार्ताओं का समावेश है । द्वितीय खंड 'व्यक्ति' में अनेक गणमान्य एवं प्रसिद्ध व्यक्तियों, श्रावकों के बारे में आचार्यश्री के उद्गार संकलित हैं । तृतीय 'मत- अभिमत' में लगभग ११ पुस्तकों के बारे में लेखक की सम्मति प्रकाशित है । चतुर्थ 'संस्थान' खंड में विभिन्न संस्थानों एवं सम्मेलनों के लिए दिए गए संदेशों एवं विचारों का संकलन है । इनमें कुछ संदेश संस्कृत भाषा में भी हैं । पंचम 'पर्व' खंड में कुछ विशेष 'नैतिक संदर्भ' खंड में एक, दो आदि समावेश है । पुस्तक में समाविष्ट लेखों सोचने की प्रेरणा भी है । उत्सवों के बारे में तथा अंतिम शीर्षकों से नैतिक विचारों का में वेधकता तो है ही, कुछ नया मुनि दुलहराजजी द्वारा संपादित इस पुस्तक में विविध विधाओं में Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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