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आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण तथा गांधीजी के रामराज्य की आदर्श कल्पना का प्रायोगिक रूप प्रस्तुत करने वाली है।
तेरापंथ और मूर्तिपूजा तेरापंथ मूर्तिपूजा में विश्वास नहीं करता । वह किसी भी व्यक्तिगत उपासना-पद्धति का खंडन या आलोचना नहीं करता, पर सही तथ्य जनता तक पहुंचाने में उसका एवं उसके नेतृत्व का विश्वास रहा है। समय-समय आचार्य तुलसी के पास मूर्तिपूजा को लेकर अनेक प्रश्न उपस्थित होते रहते हैं। उन सब प्रश्नों का सटीक एवं तार्किक समाधान इस पुस्तिका में दिया गया है । आगमिक आधार पर अनेक नए तथ्यों को प्रकट करने के कारण यह पुस्तिका अत्यन्त लोकप्रिय हुई है तथा लोगों के समक्ष धर्म का सही स्वरूप प्रस्तुत करने में सफल रही है।
दायित्व का दर्पण : आस्था का प्रतिबिम्ब
यह पुस्तक दूधालेश्वर महादेव (मेवाड़) में युवकों को संबोधित कर प्रेषित किए गए सात प्रवचनों का संकलन है । युवक अपनी क्षमता को पहचानक र शक्ति का सही नियोजन कर सकें इसी दृष्टि से दूधालेश्वर में साप्ताहिक शिविर का आयोजन हुआ। आचार्यश्री की प्रत्यक्ष सन्निधि न मिलने के कारण वाचिक सन्निधि को प्राप्त कराने के लिए सात प्रवचनों को ध्वनि-मुद्रित किया गया। वे ही सात प्रवचन इस कृति में संकलित हैं।
ये प्रवचन भारतीय संस्कृति, जैनदर्शन, तेरापंथसंघ तथा श्रावक की आचार-संहिता की विशद जानकारी देते हैं। आकार-प्रकार में छोटी होने पर भी यह कृति भाषा, भाव एवं शैली की दृष्टि से काफी समृद्ध है। इसमें आधुनिक विकृत जीवन-शैली तथा पाश्चात्य संस्कृति के अंधानुकरण पर तो प्रहार किया ही है, साथ ही चरित्रहीनता एवं आस्थाहीनता को समाप्त कर नैतिक एवं प्रामाणिक जीवन जीने का संदेश भी दिया गया है।
अहिंसा के परिप्रेक्ष्य में कई मौलिक एवं आधुनिक प्रश्नों का सटीक समाधान भी इस कृति में प्रस्तुत है। उदाहरण के लिए इसकी कुछ पंक्तियां पठनीय हैं- "कई बार भावावेश में आकार युवावर्ग कह बैठता है-"नहीं चाहिए हमें ऐसी अहिंसा और शांति, जो समाज को दब्बू और कायर बनाती है युवावर्ग ही क्यों, मैं भी कहता हूं मुझे भी नहीं चाहिए ऐसी अहिंसा और शांति, जो समाज को कायर बनाती है।"
यह कृति युवापीढ़ी की उखड़ती आस्था को पुनःस्थापित करने में अपनी विशिष्ट भूमिका निभाती है।
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