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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
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हुआ है । 'जैन तत्त्व प्रवेश भाग-१,२' में नवतत्त्व, कर्मवाद, भाव, आत्मा आदि की प्राथमिक जानकारी मिलती है तथा अन्य स्फुट विषयों का ज्ञान भी इसमें प्राप्त होता है।
इसके दूसरे भाग में-लेश्या, भाव, गुणस्थान आदि का विवेचन है। साथ ही आचार्य भिक्षु के मौलिक सिद्धांत दान, दया आदि को भी आधुनिक भाषा में प्रस्तुत किया गया है।
___ जैन तत्त्व ज्ञान में प्रवेश पाने के लिए ये दोनों कृतियां प्रवेश द्वार कही जा सकती हैं । दार्शनिक और तात्त्विक विवेचन को भी इसमें सरल एवं सहज भाषा में प्रस्तुत किया गया है। ये कृतियां आचार्य भिक्षु द्वारा रचित 'तेरह द्वार' के आधार पर निर्मित की गयी हैं। आज भी सैकड़ों मुमुक्षु और तत्त्वजिज्ञासु इन दोनों कृतियों को संस्कृत श्लोकों की भांति शब्दशः कंठस्थ करते हैं तथा इनका पारायण करते हैं।
जैन तत्त्व विधा तत्त्वज्ञान जहां हमारी दृष्टि को परिमार्जित करता है, वहां जीवन रूपांतरण में भी सहयोगी बनता है। आचार्य तुलसी का मंतव्य है कि बड़ेबड़े सिद्धांतों का मूल्य बौद्धिक समुदाय तक सीमित रह जाता है किंतु 'जैन तत्त्व विद्या' पुस्तक में सामान्य तत्त्वज्ञान को बहुत सरल और सुवोध शैली में प्रस्तुत किया गया है । प्रस्तुत कृति शिक्षित और अल्पशिक्षित दोनों वर्गों के पाठकों के लिए उपयोगी है।
यह कृति 'काल तत्त्व शतक' की व्याख्या के रूप में लिखी गयी है। जैन विद्या के लगभग १०० विषयों का विश्लेषण इस ग्रन्थ में है। आकार में छोटी होते हुए भी यह कृति ज्ञान का आकर है, इसमें कोई संदेह नहीं है। जैन विद्या का प्रारम्भिक ज्ञान कराने में यह पुस्तक बहुत उपयोगी है।
जैन दीक्षा भारतीय संस्कृति में संन्यस्त जीवन की विशेष प्रतिष्ठा है। बड़े-बड़े चक्रवतियों ने भी भौतिक सुखों को तिलाञ्जलि देकर साधना के बीहड़ पथ पर चरण बढ़ाए हैं। जैन परम्परा में तो दीक्षित जीवन का विशेष महत्त्व रहा है। कुछ भौतिकवादी व्यक्ति दीक्षा को पलायन मानते हैं पर आचार्य तुलसी ने इस पुस्तिका के माध्यम से यह स्पष्ट किया है कि दीक्षा कोई पलायन या कर्त्तव्यविमुखता नहीं, अपितु स्वयं, समाज व राष्ट्र के प्रति अधिक जागरूक होने का एक महान् उपक्रम है।
पुस्तिका में दीक्षा का स्वरूप, दीक्षा ग्रहण के कारण, दीक्षा-ग्रहण की अवस्था आदि अनेक विषयों का स्पष्टीकरण है। इस पुस्तिका में मूलतः बालदीक्षा के विरोध में उठने वाली शंकाओं का समाधान देने वाले विचारों
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