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________________ २१४ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण की दृष्टि को विशाल एवं ज्ञानयुक्त बनाने में सक्षम है । जीवन और मृत्यु इन दोनों को कलात्मक कैसे बनाया जाए, इसके विविध गुर भी इस कृति में गुंफित हैं। इसमें अनेक छोटे-छोटे दृष्टांत, उदाहरण, कथानक, रूपक तथा गाथाओं के द्वारा गहन विषय को सरल शैली में स्पष्ट करने का सुंदर प्रयत्न हुआ है। सैद्धांतिक दृष्टि से भी यह पुस्तक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण बन पड़ी है क्योंकि इसमें सरल भाषा में क्रिया, गुणस्थान, पर्याप्ति आदि का सुंदर विवेचन मिलता है। ___ आलोच्य पुस्तक प्रवचन-साहित्य की कड़ी में बारहवां पुष्प है। तत्त्वजिज्ञासु पाठक इससे जैन तत्त्व एवं सिद्धांत के कुछ प्रत्ययों की जानकारी प्राप्त कर सकेंगे, ऐसा विश्वास है । जीवन की सार्थक दिशाएं 'जीवन अनन्त संभावनाओं की कच्ची मिट्टी है'-आचार्य तुलसी के ये विचार जीवन के बारे में एक नयी सोच पैदा करते हैं। जीवन सभी जीते हैं, पर सार्थक जीवन जीने की कला बहुत कम व्यक्ति जान पाते हैं। प्रस्तुत पुस्तक सामाजिक, राष्ट्रीय और वैयक्तिक जीवन की अनेक सार्थक दिशाएं उद्घाटित करती है । ३३ आलेखों के माध्यम से प्रस्तुत कृति में व्यापक संदर्भो में नवीन आध्यात्मिक मूल्यों का प्रकटीकरण हुआ है। ___इस पुस्तक में कुछ आलेख व्यक्तिगत अनुभूतियों से संबंधित हैं तो कुछ समाज, परिवार एवं राष्ट्र से जुड़ी विसंगतियों एवं विकृतियों पर भी मार्मिक प्रहार करते हैं । 'धर्मसंघ के नाम खुला आह्वान' लेख विस्तृत होते हुए भी आधुनिकता के नाम पर पनप रही भोगविलास एवं ऐश्वर्यवादी मनोवृत्ति पर करारा व्यंग्य करता है तथा लेखक की मानसिक पीड़ा का सजीव चित्रण प्रस्तुत करता है। प्रस्तुत कृति मानव जीवन से जुड़ी सच्चाइयों की सच्ची अभिव्यक्ति है। इसे पढ़ते समय व्यक्ति अपना चरित्र सामने महसूस करता है। समीक्ष्य कृति में लीक से हटकर कुछ कहने का तथा लोगों की मानसिकता को झकझोरने का सघन प्रयत्न हुआ है। यह कृति हर वर्ग के पाठक को कुछ सोचने, समझने एवं बदलने के लिए उत्प्रेरित करेगी तथा अहिंसक समाजसंरचना की दिशा में एक नया दृष्टिकोण प्रस्तुत करेगी, यह विश्वास है। . जैन तत्व प्रवेश भाग-१.२ । जैन दर्शन के सिद्धांत रूढ़ नहीं, अपितु विज्ञान पर आधारित हैं। इसकी तत्त्व-मीमांसा भी समृद्ध है। इसमें जहां विश्व-व्यवस्था पर गहन चितन है, वहां आत्म-विकास के लिए उपयोगी तत्त्वों का भी गहन विवेचन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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