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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन २१३ व्यावहारिक जीवन में स्थान नहीं दे सकें, उसका औरों के लिए प्रवचन करना, क्या विडम्बना या धोखा नहीं है ?" पुस्तक नवसमाज के निर्माण में उत्प्रेरक का कार्य करने वाली अमूल्य सन्देशवाहिका है। जब जागे. तभी सवेरा योगक्षेम वर्ष आध्यात्मिक-वैज्ञानिक व्यक्तित्व निर्मित करने का एक हिमालयी प्रयत्न था, जिसमें अन्तर्मुखता प्रकट करने तथा विधायक भावों को जगाने के अनेक प्रयोग किए गए । समीक्ष्य वर्ष में प्रज्ञा-जागरण के अनेक उपक्रमों में एक महत्त्वपूर्ण उपक्रम था-प्रवचन । 'जब जागे, तभी सवेरा' योगक्षेम वर्ष में हुए प्रवचनों का द्वितीय संकलन है। इसमें मुख्यतः 'उत्तराध्ययन सूत्र' पर हुए ५१ प्रवचनों का समावेश है, साथ ही तेरापंथ, प्रेक्षाध्यान तथा कुछ तुलनात्मक विषयों पर विशिष्ट सामग्री भी इस कृति में देखी जा सकती है। आज के प्रमादी, आलसी और दिशाहीन मानव के लिए यह पुस्तक पथ-दर्शक का काम करती है। व्यक्तित्व-निर्माण के साथ-साथ जीवन को समग्रता से कैसे जिया जाए, इसका समाधान भी इस ग्रन्थ में है। ___ 'शिक्षा के क्षेत्र में बढ़ता प्रदूषण' आदि कुछ लेख आज की शिक्षाप्रणाली पर करारा व्यंग्य करते हैं। निष्कर्षतः यह अपनी संस्कृति एवं सभ्यता से जुड़ी एक जीवन्त रचना है। लेखक ने हजारों किलोमीटर की पदयात्रा करके इस देश की स्थितियों को बहुत नजदीकी से देखा है और उनको समाधान की रोशनी भी दी है। इन लेखों/प्रवचनों में प्रवचनकार ने अनेक संस्कृत श्लोकों, हिन्दी के दोहों तथा सोरठों आदि का भी भरपूर उपयोग किया है तथा प्रतिपाद्य को स्पष्ट करने हेतु अनेक रोचक कथाओं तथा संस्मरणों का समावेश भी इस ग्रन्थ में किया गया है। कहा जा सकता है कि भगवान महावीर द्वारा प्रतिपादित तथ्यों को आज के सांचे में ढालने का सार्थक प्रयत्न इन आलेखों में किया गया है। जागो ! निद्रा त्यागो !! . मानव जीवन को सूक्ष्मता से देखने, समझने और नया बल देने की परिष्कृत दृष्टि आचार्य तुलसी के पास है। यही कारण है कि उनके प्रवचनसाहित्य में सामाजिक, नैतिक एवं मानवीय पहलुओं के साथ गंभीर दार्शनिक चितन के स्वर भी हैं। प्रस्तुत पुस्तक ऐसे ही ५८ प्रवचनों का संकलन है। जैसा कि इसके नाम से स्पष्ट है, यह पाठक को जागरण का संदेश देती है। इसमें विविध भावों का समाहार है। आचार, संस्कार, राष्ट्रीयभावना, साधना, शिक्षा तथा धर्म आदि विषयों से युक्त यह पुस्तक पाठक Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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