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आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण का संकलन है । यह पुस्तिका अनेक महत्त्वपूर्ण तथ्यों को अपने में समेटे हुए
ज्योति के कण अणुव्रत आंदोलन के माध्यम से आचार्य तुलसी ने भारतीय जनता को रचनात्मक एवं सृजनात्मक जीवन का प्रेरक एवं उपयोगी संदेश दिया है। यह आंदोलन जहां गरीव की झोंपड़ी से राष्ट्रपति भवन तक पहुंचा, वहां सामान्य अनपढ़ ग्रामीण से लेकर प्रबुद्ध शिक्षाविद् भी इससे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सके । 'ज्योति के कण' पुस्तिका अणुव्रत के स्वरूप एवं उसके विभिन्न पक्षों का सुन्दर विश्लेषण करती है । यह लघु कृति अणुव्रत की ज्योति को जन-जन तक पहुंचाने में समर्थ रही है।
ज्योति से ज्योति जले "शरीर पर जितने रोम हैं, उससे भी अधिक आशा और उम्मीद युवापीढ़ी से की जा सकती है। उसे पूरा करने के लिए युवकों को इच्छाशक्ति और संकल्पशक्ति का जागरण करना होगा"-आचार्य तुलसी का यह उद्बोधन आज की दिशाहीन और अकर्मण्य युवापीढ़ी को एक नया बोधपाठ पढ़ाता है। ऐसे ही अनेक बोधपाठों से युक्त समय-समय पर युवकों को प्रतिबोध देने के लिए दिए गए वक्तव्यों एवं निबन्धों का संकलन ग्रन्थ है-'ज्योति से ज्योति जले।' यह पुस्तक युवकों के आत्मबल और नैतिकबल को जगाने की प्रेरणा तो देती ही है साथ ही 'श्रमण संस्कृति की मौलिक देन' तथा 'चंद्रयात्रा : एक अनुचिन्तन' आदि कुछ लेख सैद्धांतिक एवं आगमिक ज्ञान भी प्रदान करते हैं। पुस्तक में गुम्फित छोटे-छोटे प्रेरक उद्बोधनों से प्रेरणा पाकर युवासमाज निश्चित ही रचनात्मक एवं सृजनात्मक दिशा में गति कर सकता है।
तच्व क्या है ? 'तत्त्व क्या है ?' 'ज्ञानकण' की श्रृंखला में प्रकाशित होने वाला महत्त्वपूर्ण पुष्प है। इसमें धर्म के संदर्भ में फैली कई भ्रांतियों का निराकरण है । प्रस्तुत पुस्तिका में धर्म का क्रान्तिकारी स्वरूप अभिव्यक्त हुआ है । इसमें अध्यात्म को भौतिकता से सर्वथा भिन्न तत्त्व स्थापित किया गया है। लेखक का मानना है- “भौतिकता स्वार्थमूलक है, स्वार्थ-साधना में संघर्ष हुए बिना नहीं रहते । आध्यात्मिकता का लक्ष्य परमार्थ है-इसलिए वहां संघर्षों का अन्त होता है।" उनका यह कथन अनेक भ्रांतियों को दूर करने वाला है।
धर्म और राजनीति को सर्वथा पृथक् नहीं किया जा सकता अतः धर्म के विविध पक्षों को उजागर करते हए आचार्य तुलसी राजनीतिज्ञों को
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