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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
२०७ वर्तमान के संदर्भ में उतने ही सामयिक, उपयोगी, सार्थक एवं प्रासंगिक प्रतीत होते हैं। इनकी उपजीव्यता आज भी उतनी ही है, जितनी पहले थी। अहिंसा और स्वतंत्रता को जिस मौलिक चिंतन के साथ इस पुस्तक में प्रस्तुत किया गया है, वह पठनीय है।
ये लघु आलेख व्यक्ति, समाज एवं देश के आसपास घूमती समस्याओं को हमारे सामने रखते हैं, साथ ही सटीक समाधान भी प्रस्तुत करते हैं।
आत्मनिर्माण के इकतीस सूत्र सन् १९४८ का चातुर्मास गुलाबी नगरी जयपुर में हुआ । चातुर्मास के दौरान भाद्रव शुक्ला नवमी से पूर्णिमा तक सात दिन के लिए आत्मनिर्माण सप्ताह का आयोजन किया गया । उस सप्ताह के अन्तर्गत आचार्य तुलसी द्वारा उद्बोधित ज्ञान-कणों का संकलन इस पुस्तिका में किया गया है। इसमें अहिंसा, सत्य, अस्तेय, ब्रह्मचर्य एवं अपरिग्रह का आंशिक पालन करने के नियमों का उल्लेख है। एक गृहस्थ अपने जीवन में अहिंसा आदि का पालन किस प्रकार कर सकता है, इसका सुंदर दिशादर्शन इस पुस्तिका में मिलता है।
आकार में लघु होते हुए भी यह पुस्तक मानवीय आचार-संहिता को प्रस्तुत करने वाली है। ये ३१ सूत्र वैयक्तिक दृष्टि से तो महत्त्वपूर्ण हैं ही, सामाजिक एवं राष्ट्रीय स्तर को समुन्नत बनाने में भी इनका महत्त्वपूर्ण स्थान है।
आह,वान आचार्य तुलसी का प्रत्येक वाक्य प्रेरक और मर्मस्पर्शी होता है, पर उनके कुछ विशेष उद्बोधन इतने महत्त्वपूर्ण हैं कि काल का विक्षेप भी उन्हें धूमिल नहीं कर सकता । एक धर्माचार्य होते हुए भी आचार्य तुलसी समाज के बदलते परिवेश के प्रति जागरूक हैं। ऐसा इसलिए संभव है क्योंकि उनके पास जीवन की मार्मिकता को समझने एवं व्यक्त करने की अद्भुत क्षमता एवं सूक्ष्म दृष्टि है।
'आआह्वान' पुस्तिका में बगड़ी मर्यादा महोत्सव (१९९१) में हए एक विशेष वक्तव्य का संकलन है। इस ओजस्वी वक्तव्य ने प्रवचन-पंडाल में बैठे हजारों व्यक्तियों की चेतना को झंकृत कर उन्हें कुछ सोचने के लिए मजबूर कर दिया। लोगों की मांग थी कि यह प्रवचन जन-जन तक पहुंचना चाहिए, जिससे अनुपस्थित लोग भी इससे प्रेरणा ले सकें। इस प्रवचन का एक-एक वाक्य वेधक है । इसमें आचार्य श्री ने सामाजिक बुराइयों के प्रति समाज का ध्यान आकृष्ट किया है तथा युग को देखते हुए उन्हें रूपान्तरण की प्रेरणा भी दी है । इस प्रवचन को पढ़ने से लगता है कि इसमें उनकी अथाह पीड़ा
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