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________________ आ तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण व्यक्त हुई है, पर घुटन नहीं है । इसमें उनके हृदय की वेदना बोल रही है, पर निराशा नहीं है । २०८ आचार्यश्री ने सफलता की अनेक सीढ़ियों को पार किया है, पर सफलता के मद ने उनकी अग्रिम सफलता को प्राप्त करने वाले रास्ते को अवरुद्ध नहीं किया । इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि वे अपनी असफलता को भी देखते रहते हैं । इस दृष्टि से लेख का निम्न अंश पठनीय है " धर्मसंघ की सफलता का व्याख्यान सिक्के का एक पहलू है । इसका दूसरा पहलू हैउन बिन्दुओं को देखना, जहां हम असफल रहे हैं अथवा जिन बातों की ओर अब तक हमारा ध्यान नहीं गया है । इसके लिए हमारे पास एक ऐसी आंख होनी चाहिये, जो हमारी कमियों को, असफलताओं को देख सके और हमें अपने करणीय के प्रति सचेत कर सके ।संघ के एक-एक सदस्य का दायित्व है कि वह उस पृष्ठ को देखे, जो अब तक खाली है । जिन लोगों के पास चिन्तन, सूझबूझ और काम करने की क्षमता है, वे उस खाली पृष्ठ को भरने के लिए क्या करेंगे, यह भी तय करें ।" ऐश्वर्य के उच्च शिखर पर आरूढ़ प्रदर्शन एवं आडम्बरप्रिय व्यक्तियों को यह संदेश त्याग, संयम, सादगी एवं बलिदान का उपदेश देने वाला है । उद्बोधन अणुव्रत आंदोलन किसी सामयिक परिस्थिति से प्रभावित तात्कालिक क्रान्ति करने वाला आन्दोलन नहीं, अपितु शाश्वत दर्शन की पृष्ठभूमि पर टिका हुआ है । इस आंदोलन के माध्यम से आचार्य तुलसी ने केवल विभिन्न वार्तमानिक समस्याओं को ही नहीं उठाया, बल्कि सटीक समाधान भी प्रस्तुत किया है । सामयिक संदर्भों पर 'अणुव्रत' पत्रिका में प्रकाशित संक्षिप्त विचारों का संकलन ही 'उद्बोधन' है । इसमें नैतिकता के विषय में नए दृष्टिकोण से विचार किया गया है । अतः प्रस्तुत कृति व्यक्ति को प्रामाणिकता के सांचे में ढालने हेतु अनेक उदाहरणों, सुभाषितों एवं घटनाओं को माध्यम बनाकर विषय की सरस एवं सरल प्रस्तुति करती है। यह पुस्तक साम्प्रदायिकता, प्रान्तीयता आदि विकृत मूल्यों को वदलकर समन्वय एवं समानता के मूल्यों की प्रस्थापना करने का भी सफल उपक्रम है । इसमें अणुव्रत-दर्शन को अध्यात्म, संस्कृति, समाज और मनोविज्ञान के साथ जोड़ने का सार्थक प्रयत्न किया गया है । परिवर्धित रूप में इसका नवीन संस्करण 'समता की आंख : चरित्र की पांख' के नाम से प्रकाशित है । कुहासे में उगता सूरज 'कुहासे में उगता सूरज' १०१ आलेखों का महत्वपूर्ण संकलन है । ये Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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