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________________ २०६ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण में अहिंसा के प्रभाव को नए संदर्भ में प्रस्तुत करते हुए लेखक का कहना है-- "दूसरे की सम्पत्ति, ऐश्वर्य और सत्ता को देखकर मुंह में पानी नहीं भर आता, यह अहिंसा का ही प्रभाव हैं।" सम्पूर्ण लेख में अहिंसा को नए परिवेश के साथ प्रस्तुत किया गया है । आज के हिंसा-संकुल वातावरण में यह लेख अहिंसा की सशक्त भूमिका तैयार करने में अपनी अहंभूमिका रखता है। आगे की सुधि लेइ प्रवचन-साहित्य जन-साधारण को नैतिकता की ओर प्रेरित करने का सफल उपक्रम है। 'आगे की सुधि लेइ' प्रवचन पाथेय ग्रन्थमाला का तेरहवां पुष्प है। यह १९६६ में गंगाशहर (राज.) में प्रदत्त आचार्य तुलसी के प्रवचनों का संकलन है। प्रवचनकार श्रोता, समय एवं परिस्थिति को देखकर अपनी बात कहते हैं, अतः उसमें विषय-वैविध्य और पुनरुक्ति होना स्वाभाविक है । पर प्रवचनकार आचार्य तुलसी का मानना है कि भिन्न-भिन्न दृष्टियों से प्रतिपादित एक ही बात अपनी उपयोगिता के आगे प्रश्नचिह्न नहीं लगने देती। इन प्रवचनों में जागरण का संदेश है, आत्मोत्थान की प्रेरणा है तथा व्यक्ति से लेकर अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर उभरने वाली समस्याओं का समाधान भी गुंफित है । प्रवचन-साहित्य की कड़ी में यह एक महत्त्वपूर्ण पुस्तक है, जो अज्ञान के अंधेरे में भटकते मानव को सही मार्गदर्शन देने में सक्षम है। पुस्तक के अंत में तीन परिशिष्ट जोड़े गए हैं, जिससे यह ग्रन्थ अधिक उपयोगी बन गया है। ___ आज से २७ वर्ष पूर्व के ये ५४ प्रवचन अपनी उपयोगिता के कारण आज भी ताजापन लिए हुए है। आचार्य तुलसी के अमर संदेश - प्रसिद्ध विद्वान् विद्याधर शास्त्री कहते हैं-"आचार्य तुलसी के अमर संदेश पुस्तक विश्व दर्शन की उच्चतम पुस्तक है ।" यह सर्वोदय ज्ञानमाला का चौथा पुष्प है। इसमें चारित्रिक बल को जागृत कर आध्यात्मिक शक्ति को बढ़ाने की चर्चा है। प्रस्तुत पुस्तक में विशिष्ट अवसरों पर दिए प्रवचनों एवं महत्त्वपूर्ण आयोजनों में प्रेषित संदेशों का संकलन है । जैसे- लंदन में आयोजित 'विश्व-धर्म सम्मेलन' के अवसर पर भेजा गया महत्त्वपूर्ण लेख'अशांत विश्व को शांति का संदेश' आदि । राजनीति और धर्म के अनेक अनछुए एवं महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर प्रस्तुत पुस्तक नए विचारों की प्रस्तुति देती है साथ ही अन्तश्चेतना को झकझोरने में भी पर्याप्त सहायक बनती है। ये प्रवचन पुराने होते हुए भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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