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________________ १३० आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण आध्यात्मिक दर्शन नहीं होता, कोई रास्ता दिखाने वाला नहीं होता। किंतु यह विषम स्थिति महावीर, बुद्ध और गांधी के देश में हो रही है, जहां से सारे संसार को चरित्र की शिक्षा मिलती थी। भारत की माटी के कण-कण में महापुरुषों के उपदेश की प्रतिध्वनियां हैं। यहां गांव-गांव में मंदिर हैं, मठ हैं, धर्मस्थान हैं, धर्मोपदेशक हैं । फिर भी यह चारित्रिक दुर्बलता ! एक अनुत्तरित प्रश्न आज भी आक्रांत मुद्रा में खड़ा है।" अणुव्रत के माध्यम से आचार्य तुलसी अपने संकल्प की अभिव्यक्ति निम्न शब्दों में करते हैं - "अणुव्रत ने यह दावा कभी नहीं किया है कि वह इस धरती से भ्रष्टाचार की जड़ें उखाड़ देगा। वह सदाचार की प्रेरणा देता है और तब तक देता रहेगा, जब तक हर सुबह का सूरज अन्धकार को चुनौती देकर प्रकाश की वर्षा करता रहेगा।"२ अणुव्रत की आचार संहिता से प्रभावित होकर स्वतंत्र भारत के प्रथम राष्ट्रपति डा. राजेन्द्रप्रसाद अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए कहते हैं"अणुव्रत आंदोलन का उद्देश्य नैतिक जागरण और जनसाधारण को सन्मार्ग की ओर प्रेरित करना है। यह प्रयास अपने आपमें इतना महत्त्वपूर्ण है कि इसका सभी को स्वागत करना चाहिए। आज के युग में जबकि मानव अपनी भौतिक उन्नति से चकाचौंध होता दिखाई दे रहा है और जीवन के नैतिक और आध्यात्मिक तत्त्वों की अवहेलना कर रहा है, वहां ऐसे आंदोलनों के द्वारा ही मानव अपने संतुलन को बनाए रख सकता है और भौतिकवाद के विनाशकारी परिणामों से बचने की आशा कर सकता है।" अणुव्रत आंदोलन ने अपने व्यापक दृष्टिकोण से सभी धर्मों के व्यक्तियों को धर्म एवं नैतिक मूल्यों के प्रति आस्थावान् बनाया है। वह किसी की व्यक्तिगत आस्था या उपासना पद्धति में हस्तक्षेप नहीं करता। व्यक्ति अपने जीवन को पवित्र एवं चरित्र को उन्नत बनाए, यही अणुव्रत का उद्देश्य है। अणुव्रत आंदोलन का जन-जन में प्रचार करते हुए आचार्य तुलसी अपना अनुभव बताते हुए कहते हैं-"हिन्दुस्तान की एक विशेषता मैंने देखी कि मुझे इस देश में कोई नास्तिक नहीं मिला । ऐसे लोग, जिन्होंने प्रथम बार में धर्म के प्रति असहमति प्रकट की, किन्तु अणुव्रत धर्म की असाम्प्रदायिक एवं व्यावहारिक व्याख्या सुनकर वे स्वयं को धार्मिक मानने में गौरव की अनुभूति करने लगे।' आचार्य तुलसी के शब्दों में अणुव्रत आंदोलन के निम्न फलित हैं १. अनैतिकता की धूप : अणुव्रत की छतरी, पृ० १८० । २. बैसाखियां विश्वास की, पृ० ४ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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