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________________ १२२, - आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण ___ आचार्य तुलसी ने राष्ट्र की अनेक समस्याओं का हल राजनेताओं के समक्ष प्रस्तुत किया है क्योंकि उनकी दृष्टि में राजनैतिक वादों की समस्याओं का हल भी धर्म के पास है। साम्यवाद और पूंजीवाद का सामंजस्य करते हुए ५० वर्ष पूर्व कही गयी उनकी निम्न टिप्पणी कितनी महत्त्वपूर्ण है--- "अमर्यादित अर्थ-लालसा समस्या का मूल है। पूंजीपति शोषण की सुरक्षा दान की आड़ में चाहते हैं। पर अब वह युग बीत गया है । पूंजीपति यदि संग्रह के विसर्जन की बात नहीं समझे तो वैषम्य का चाल प्रवाह न एटमबम और उद्जनबम से रुकेगा और न अस्त्र-शस्त्रों के निर्माण से । आज के त्रस्त जन-हृदय में विप्लव है।........"संग्रह की निष्ठा आज हिंसा को निमंत्रण है। आवश्यकताओं का अल्पीकरण अपरिग्रह की दिशा है । यही पूंजीवाद और साम्यवाद के तनाव को मिटाने का व्यवहार्य मार्ग है।' उनके इसी समाधायक व्यक्तित्व से प्रभावित होकर भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति ज्ञानी जैलसिंह ने हजारों की उपस्थिति में आचार्यश्री के चरणों में अपनी भावना प्रस्तुत करते हुए कहा--"आपको सरकार की नहीं, अपितु सरकार को आपकी जरूरत है।" ... धर्म और विज्ञान धर्म और विज्ञान को विरोधी तत्त्व मानकर बहुत सारे धर्माचार्य विज्ञान की उपेक्षा करते रहे हैं। यही कारण है कि अध्यात्म और विज्ञान परस्पर लाभान्वित नहीं हो सके। आचार्य तुलसी ने इस दिशा में एक नई पहल करते हुए दोनों में सामंजस्य स्थापित करने का सफल प्रयत्न किया है । वे धर्म और विज्ञान को एक ही सिक्के के दो पहलू मानते हैं जिनको कि अलग नहीं किया जा सकता। वे बहुत स्पष्ट शब्दों में कहते हैं कि धर्म की तेजस्विता विज्ञान से ही संभव है, क्योंकि विज्ञान प्रयोग से जुड़ा होने के कारण धर्म को रूढ होने से बचाता है। साथ ही प्रकृति के रहस्यों का उद्घाटन करके विज्ञान ने जो शक्ति मानव के हाथों में सौंपी है, उस शक्ति का सही उपयोग धार्मिक हाथों से ही संभव है। उनका अनुभव है कि धर्म और विज्ञान एक-दूसरे के पूरक और सापेक्ष होकर चलें तो भारतीय संस्कृति में नव उन्मेष संभव है। क्योंकि विज्ञान जहां बाह्य सुख-सुविधा प्रदान करता है, वहां अध्यात्म आन्तरिक पवित्रता एवं सुख-शांति देता है । सन्तुलित एवं शांतिपूर्ण जीवन के लिए दोनों आवश्यक हैं। अन्यथा ये दोनों खण्डित सत्य को ही अभिव्यक्ति देते रहेंगे।"3 १. नैतिकता की ओर, पृ० ४ । २. जैन भारती, १४ सितम्बर १९६९ । ३. २७-८-६९ के प्रवचन से उद्धृत ।।.. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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