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________________ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण "अप्रमाणिक या अनैतिक जीवन में धार्मिक होने का दावा फटे टाट में रेशमी पैबन्द लगाने जितना उपहासास्पद है ।" उनके साहित्य में उन लोगों के समक्ष अनेक ऐसे प्रश्न उपस्थित हैं, जो पीढ़ियों से अपने को धार्मिक मानते आ रहे हैं । ये प्रश्न उन्हें अपने बारे में नए ढंग से सोचने को विवश करते हैं तथा अन्तर में झांकने के लिए प्रेरित करते हैं । यद्यपि ये प्रश्न बहुत सामान्य एवं व्यावहारिक हैं पर रूपांतरण घटित करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। यहां कुछ प्रश्नों को उपस्थित किया जा रहा है: 1 १२० १. समता या मैत्री का व्रत लिया है, पर दूसरों के प्रति क्रूरता कम हुई या नहीं, इसकी आलोचना करें । २. सत्य के प्रति निष्ठा दरसाई है, पर ईमानदारी की वृत्ति बढ़ी या नहीं, इसका अनुवीक्षण करें । ३. सरल जीवन बिताने का संकल्प लिया है । पर वक्रता का भाव छूटा या नहीं, इसे टंटोलें । ४. संयम का पथ चुना है, पर जीवन की आवश्यकताएं कम हुई या नहीं, मुड़कर देखें ।' धर्म और राजनीति धर्म और राजनीति दो भिन्न-भिन्न धाराएं हैं। दोनों का उद्देश्य भी भिन्न-भिन्न है । धर्म व्यक्तित्व रूपान्तरण की प्रक्रिया है और राजनीति राज्य को सही दिशा में ले चलने वाली प्रक्रिया । आचार्य तुलसी के शब्दों में राजनीति का सूत्र है- दूसरों को देखो और धर्मनीति का सूत्र हैअपने आपको देखो ।" आचार्य तुलसी की यह बहुत स्पष्ट अवधारणा है कि धर्म जब अपनी मर्यादा से राज्य सत्ता में घुलमिल जाता है तो वह विष से भी अधिक जाता है ।" उनका चिन्तन है कि यदि राजनीति से धर्म का विसंबंधन नहीं रहा तो वह विरोध, संघर्ष और युद्ध का साधनमात्र रह जाएगा जहां कहीं धर्म का राजनीति के साथ गठबन्धन कर उसे जनता पर थोपा गया, वहां हिंसा और रक्तपात ने समूचे राष्ट्र में तबाही मचा दी। इसका कारण स्पष्ट करते हुए वे कहते हैं- " राजनीति अपना प्रयोजन सिद्ध करने के लिए हिंसा के कंधे पर सवारी कर लेती है पर धर्म का हिंसा के साथ दूर का भी रिश्ता नहीं है । " दूर हटकर घातक बन १. पथ और पाथेय, पृ० ९१-९२ । २. धर्म और भारतीय दर्शन, पृ० ५ । ३. जैन भारती, ८ मई १९५५ । ४. एक बूंद : एक सागर, पृ० ७४० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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