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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
मिलना चाहते हैं, किन्तु पड़ोसी से मिलना नहीं चाहते । वे मन्दिर में जाकर भक्त कहलाना चाहते हैं लेकिन दुकान और बाजार में ग्राहकों को धोखा देने से बचना नहीं चाहते।"
. धर्म जीवन का रूपान्तरण करता है। पर जिनमें परिवर्तन घटित नहीं होता उन धार्मिकों को सम्बोधित करते हुए वे कहते हैं- "मैं उन धार्मिकों से हैरान हूं, जो पचास वर्षों से धर्म करते आ रहे हैं, किन्तु जीवन में परिवर्तन नहीं आ रहा है।"
___ धार्मिक की सबसे बड़ी पहचान है कि वह प्रेम और करुणा से भरा होता है। धार्मिक होकर भी व्यक्ति लड़ाई, झगड़े, दंगे-फसाद करे, यह देखकर आश्चर्य होता है। इस विषय में आचार्य तुलसी दुःख भरे शब्दों में अपने विचार व्यक्त करते हुए कहते हैं---"धार्मिक अधर्म से लड़े, यह तो समझ में आता है, किन्तु एक धार्मिक दूसरे धार्मिक से लड़े, यह दुःख का विषय है।"
वे धर्म और नैतिकता को विभक्त करके नहीं देखते । धार्मिक होकर यदि व्यक्ति नैतिक नहीं है तो यह धर्म के क्षेत्र का सबसे बड़ा विरोधाभास है। वे इस बात को गणितीय भाषा में प्रस्तुत करते हैं-"आज देश की लगभग ८० करोड़ की आबादी में सत्तर करोड़ जनता धार्मिक मिल सकती है पर जहां तक ईमानदारी का प्रश्न है, दो करोड़ भी सम्भव नहीं है। इसका तात्पर्य यह हुआ कि बेईमान धार्मिकों की संख्या अधिक है।" वे कहते हैं- “एक धार्मिक कहलाने वाला व्यक्ति चरित्रहीन हो, हिंसा पर उतारू हो, आक्रांता हो, धोखाधड़ी करने वाला हो, छुआछूत में उलझा हुआ हो, शराब पीता हो, दहेज की मांग करता हो और भी अनेक अनैतिक आचरण करता हो, क्या वह धार्मिक कहलाने का अधिकारी है ?"
सच्चे धार्मिक की पहचान बताते हुए वे कहते हैं.---"अशांति में जो आदमी शांति को ढूंढ निकालता है, अपवित्रता में से जो पवित्रता को ढूंढ लेता है, असन्तुलन में से जो सन्तुलन को खोज लेता है और अन्धकार में से प्रकाश को ढूंढ लेता है, वह धार्मिक है।
वे धार्मिक की कसौटी मन्दिर या धर्मस्थान में जाना नहीं मानते अपितु उसकी सही कसौटी दुकान पर बैठकर पवित्र रहना मानते हैं । इसी बात को वे साहित्यिक शैली में प्रस्तुत करते हुए कहते हैं---
१. विज्ञप्ति सं० ८२७ ।। २. एक बूंद : एक सागर, पृ० ६१ । ३. क्या धर्म बुद्धिगम्य है ? पृ० १२ । ४. १३-७-६९ के प्रवचन से उद्धृत ।
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