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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन १०९ अवधारणा है कि ये भौतिक शस्त्र उतने खतरनाक नहीं जितना सचेतन शस्त्र मनुष्य है। सचेतन शस्त्र को परिभाषित करते हुए वे कहते हैं-'शस्त्र वह बनता है, जो असंयत होता है । शस्त्र वह बनता है, जो क्रूर होता है। शस्त्र वह बनता है, जो प्राणी-प्राणी में भेद समझता है।"" उनका मानना है कि केवल कुछ प्रक्षेपास्त्रों को कम करने से निःशस्त्रीकरण का नारा बुलन्द नहीं किया जा सकता। शक्ति सन्तुलन के लिए भी वे शस्त्र-निर्माण की बात से सहमत नहीं हैं क्योंकि इससे अपव्यय तो होता ही है साथ ही किसी के गलत हाथों से दुरुपयोग होना भी बहुत सम्भव है। आज से ३३ साल पूर्व भारत के सम्बन्ध में कही गयी उनकी यह उक्ति अत्यन्त मार्मिक एवं प्रेरणादायी है--- "आज हमारे पास राकेट नहीं, बम नहीं। मैं कहूंगा यह भारत के पास न हो। भारत इस माने में दरिद्र ही रहे । कारण यह कि डर तो न रहे। डर तो उनको है, जिनके पास बम है । हमारे पास तो सबसे बड़ी सम्पत्ति अहिंसा की है । जब तक हमारे पास यह सम्पत्ति सुरक्षित है, कोई भी भौतिकवादी हमारे सामने देख नहीं सकेगा। अगर हमने यह सम्पत्ति खो दी तो हमारा बचाव होना मुश्किल है। उनका स्पष्ट मन्तव्य है कि जिस राष्ट्र की नीति में दूसरे राष्ट्रों को दबाने के लिए शस्त्रों का विकास किया जाता है, वह राष्ट्र विश्वशांति के लिए सबसे अधिक बाधक है। अहिंसक विश्व रचना की उनके दिल में कितनी तड़प है, यह उनकी निम्न उक्ति से पहचानी जा सकती है---"जिस दिन अणु-अस्त्रों पर सम्पूर्ण प्रतिबन्ध लगेगा, क्रूर हिंसा रूपी राक्षसी को कील दिया जायेगा, वह दिन समूची मानव जाति के लिए महान् उपलब्धि का दिन होगा। यह मेरा व्यक्तिगत सपना है । वे कहते हैं सामंजस्य और समन्वय के बिना कोई रास्ता नहीं कि शस्त्र-निर्माण के स्थान पर अहिंसा की प्रतिष्ठा हो सके क्योंकि अभय, सद्भाव और सहिष्णुता निःशस्त्रीकरण के बीज हैं।" आचार्य तुलसी के अहिंसक प्रयोग "अहिंसा में मेरा अंधविश्वास नहीं है। वह मेरे जीवन की प्रकाशरेखा है। मैंने इससे अपने जीवन को आलोकित करने का प्रयत्न किया है। मैं इससे बहुत सन्तुष्ट और प्रसन्न हूं'--''आचार्य तुलसी की यह अनुभवपूत वाणी उनके अहिंसक व्यक्तित्व की प्रतिध्वनि है। उनके साये में आने १. लघुता से प्रभुता मिले, पृ० ३७ । २. जैन भारती, १७ जुलाई १९६० । ३. कुहासे में उगता सूरज, पृ० २४ ।। ४. कुहासे में उगता सूरज, पृ० २८-२९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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