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________________ १०८ आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण कल्पना सार्थक की जा सकती हैं क्योंकि शांति के सारे रहस्य अहिंसा के पास हैं । अहिंसा से बढ़कर कोई शास्त्र नहीं है, शस्त्र भी नहीं है।' उनके दिमाग में यह प्रत्यय स्पष्ट है कि अहिंसा और अनेकांत की आंखों में ही विश्वशांति का सपना उतर सकता है पर वह बलप्रयोग से नहीं, हृदयपरिवर्तन द्वारा ही सम्भव है। इसी भावना से प्रेरित होकर उन्होंने अणुव्रत का रचनात्मक उपक्रम मानव जाति के समक्ष उपस्थित किया। न्यूनतम मानवीय मूल्यों के प्रति वैयक्तिक वचनबद्धता प्राप्त कर विश्व को हिंसा से मुक्ति दिलाने का यह अनूठा प्रयोग है। व्रतों को आन्दोलन का रूप देकर उनके द्वारा शांति स्थापित करने का यह विश्व के इतिहास में पहला प्रयास है। अणुव्रत के कुछ नियम जैसे--मैं निरपराध प्राणी की हिंसा नहीं करूंगा, तोड़-फोड़ मूलक प्रवृत्तियों में भाग नहीं लूंगा। मैं किसी पर आक्रमण नहीं करूंगा। आक्रामक नीति का समर्थन नहीं करूंगा। विश्वशांति तथा निःशस्त्रीकरण के लिए प्रयत्न करूंगा। साम्प्रदायिक उत्तेजना नहीं फैलाऊंगा । मानवीय एकता में विश्वास करूंगा। जाति रंग के आधार पर किसी को ऊंच-नीच नहीं मानूंगा। अस्पृश्य नहीं मानूंगा-ये सभी नियम विश्वशांति के आधारभूत स्तम्भ हैं। यदि हर व्यक्ति इन नियमों को स्वीकार कर अणुव्रती बन जाए तो विश्व-शांति की स्थापना बहुत सम्भव है। प्रकाशित रूप से आचार्य तुलसी का सबसे प्राचीन सन्देश है-- 'अशांत विश्व को शांति का सन्देश।' इस पूरे सन्देश में उन्होंने विश्वशांति के लिए १३ सूत्रों का निर्देश किया है, जिसे पढ़कर महात्मा गांधी ने अपनी टिप्पणी व्यक्त करते हुए कहा--- "क्या ही अच्छा होता जब सारी दुनिया इस महापुरुष के बताए मार्ग पर चलती।" कोरियन पर्यटक एक प्रोफेसर ने जब आचार्य तुलसी से अहिंसा, शांति और अणुव्रत का सन्देश सुना तो वह आश्चर्य मिश्रित दुःखद स्वरों में बोला--- "काश ! हम पश्चिम वालों को यह सन्देश कोई सुनाने वाला होता तो हम निरन्तर महायुद्धों में पड़कर बर्बाद नहीं होते।" निःशस्त्रीकरण - शस्त्रीकरण के भयावह दुष्परिणामों से समस्त विश्व भयाक्रांत है इसीलिए आज निःशस्त्रीकरण की आवाज चारों ओर से उठ रही है। महावीर ने आज से ढाई हजार वर्ष पूर्व इस सत्य को अभिव्यक्त किया था कि शस्त्र परम्परा का कहीं अन्त नहीं होता। इसके लिए व्यक्ति के मन में जो शस्त्र बनाने की चेतना है, उसे मिटाना आवश्यक है। आचार्य तुलसी की १. कुहासे में उगता सूरज, पृ० १७३ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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