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गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन
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दुनिया में प्रति मिनिट एक करोड़ चालीस लाख से भी अधिक रुपये हथियारों के निर्माण में खर्च हो रहे हैं । स्वयं परमाणु अस्त्र निर्माता भी अपने अस्तित्व की सुरक्षा के लिये भयभीत हैं । आचार्य तुलसी की अहिंसक चेतना आज की इस स्थिति से उद्वेलित है । अणुशक्ति पर विश्वास रखने वालों को वे व्यंग्य में पूछते हैं- “शांति के लिए सब कुछ हो रहा है—ऐसा सुना जाता है युद्ध भी शांति के लिए, स्पर्धा भी शांति के लिए, अशांति के जितने बीज हैं, वे सब शांति के लिए - यह मानसिक झुकाव भी कितनी भयंकर भूल है। बात चले विश्वशांति की और कार्य हों अशांति के तो शांति कैसे सम्भव हो ? विश्वशांति के लिये अणुबम आवश्यक है, यह घोषणा करने वालों ने यह नहीं सोचा कि यदि यह उनके शत्रु के पास होता तो । " यद्यपि आचार्य तुलसी व्यक्तिगत चिंतन के स्तर पर शांति एवं सद्भाव की स्थापना के लिए अणुशस्त्रों के निर्माण के कट्टर विरोधी हैं । फिर भी भारत के बारे में उनकी निम्न टिप्पणी चिन्तन की नयी दिशाएं उद्घाटित करने वाली है- "भारत विज्ञान और एटमबम का देश नहीं, अध्यात्म और अहिंसा का देश है । अहिंसा और अध्यात्म के देश में विज्ञान न हो, बम न हो, ऐसी बात नहीं, किन्तु हम इन चीजों को प्रधानता नहीं देते हैं, यह इस संस्कृति की विशेषता है ।"
आचार्य तुलसी का चिन्तन है कि शांति और सद्भाव को प्रतिष्ठित करने से पूर्व अशांति और असद्भाव के कारणों को जान लेना जरूरी है । उनकी दृष्टि में संयमहीन राष्ट्रीयता की भावना, रंगभेद और जातिभेद की भित्ति पर टिकी हुई उच्चता और नीचता की परिकल्पना, अधिकार- विस्तार की भावना और अस्त्रों की होड़- ये सभी विश्वशांति के लिये खतरे हैं । " वे स्पष्ट कहते हैं जब तक जीवन में दम्भ रहेगा, क्षोभ रहेगा, तब तक शांति का अवतरण हो सके, यह कम सम्भव है । ३ वे अनेक बार इस सत्य को अभिव्यक्त करते हैं कि इच्छाओं का विस्तार ही विश्वशांति का सबसे बड़ा खतरा है । अत: दूसरों के अधिकारों पर हाथ न उठाना ही विश्वशांति का मूलस्रोत है ।'
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हिंसक क्रांति द्वारा विश्व शांति लाने वाले लोगों को आचार्य तुलसी की चेतावनी है कि हिंसा की धरती पर शांति की पौध नहीं उगायी जा सकती । अहिंसा की विशाल चादर के प्रयोग से ही विश्वशांति की
१. जैन भारती, २३ जून १९६८ । २. जैन भारती, ६ जुलाई १९५८ । ३. प्रवचन डायरी, भाग १, पृ० १५७ । ४. एक बूंद : एक सागर, पृ० १२६७ ।
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