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आ० तुलसी साहित्य : एक पर्यवेक्षण करना पड़ता है । मैं चाहता हूं मनुष्य की यह अन्तिम शरण प्रारंभिक शरण बने।"
__ आचार्य तुलसी के चिंतन में युद्ध में अहिंसक प्रयोग के लिए समुचित भूमिका, प्रभावशाली नेतृत्व, अहिंसा के प्रति अनन्य निष्ठा तथा उसके लिये मर मिटने वाले बलिदानियों की अपेक्षा रहती है। आक्रमण एवं युद्ध का अहिंसक प्रतिकार करने वाले में आचार्य तुलसी तीन विशेषताएं आवश्यक मानते हैं
१. वह अभय होगा, मौत से नहीं डरेगा। २. वह अनुशासन और प्रेम से ओत-प्रोत होगा, मानवीय एकता में __ आस्था रखेगा। ३. वह मनोबली होगा-अन्याय के प्रति असहयोग करने की
भावना किसी भी स्थिति में नहीं छोड़ेगा।
युद्ध अनिवार्य हो सकता है, फिर भी युद्ध के बारे में उनका अंतिम सुझाव या निर्णय यही है कि युद्ध में जय निश्चित हो फिर भी वह न किया जाए क्योंकि उसमें हिंसा और जनसंहार तो निश्चित है पर समस्या का स्थायी समाधान नहीं है""""युद्ध आज के विकसित मानव समाज पर कलंक का टीका है।'४ वे कहते हैं- "युद्ध परिस्थितियों को दबा सकता है पर शांत नहीं कर सकता। दबी हुई चीज जब भी अवसर पाकर उफनती है, दुगुने वेग से उभरती है।"
लोगों को मस्तिष्कीय प्रशिक्षण देते हुए वे कहते हैं-"युद्ध करने वाले और युद्ध को प्रोत्साहन देने वाले किसी भी व्यक्ति को आज तक ऐसा कोई ऐसा महत्त्वपूर्ण प्रोत्साहन नहीं मिला, जो उसे गौरवान्वित कर सके । युद्ध तो बरबादी है, अशांति है, अस्थिरता है और जानमाल की भारी तबाही है। अहिंसा और विश्वशांति
____ आचार्य तुलसी की दृष्टि में शांति उस आह्लाद का नाम है, जिससे आत्मा में जागृति, चेतनता, पवित्रता, हल्कापन और मूल-स्वरूप की अनुभूति होती है। आज सारा संसार शांति की खोज में भटक रहा है पर आणविक अस्त्रों के निर्माण ने विश्व शांति के अस्तित्व को खतरे में डाल दिया है। पूरी १. तेरापंथ टाईम्स, १८ फरवरी १९८१ । २. अणुव्रत : गति प्रगति, पृ० १५१ । ३-४. क्या धर्म बुद्धिगम्य है ? पृ० ७३ । ५. कुहासे में उगता सूरज, पृ० २७ । .. ६. अणुव्रत, १५ अक्टूबर १९५७ ।
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