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________________ सुन्दरम् गणाधिपति गुरुदेव श्री तुलसी तेरापंथ धर्मसंघ के आचार्य रूप में जितने प्रख्यात हुए हैं, 'अगुव्रत अनुशास्ता' के रूप में उससे भी अधिक प्रसिद्धि आपने अजित की है । आपका कर्तृत्व अमाप्य है । उसे मापने का कोई पैमाना दृष्टिगोचर नहीं हो रहा है। आपके कर्तृत्व का एक घटक है-आपका साहित्य । हिन्दी, राजस्थानी और संस्कृत में आप द्वारा लिखे गए गद्यात्मक और पद्यात्मक ग्रंथ साहित्यभंडार की अमूल्य धरोहर हैं। हिन्दी भाषा में आपके प्रवचनों और निबन्धों की बहुत पुस्तकें हैं । विषयों की दृष्टि से वे बहुआयामी हैं। उनका अनुशीलन किया जाए तो बहुत ज्ञान हो सकता है। अहिंसा, आचार, धर्म, अणुव्रत आदि सैकड़ों विषयों में आपके अनुभव और चिन्तन ने विचारों के नए क्षितिज उन्मुक्त किए हैं। कोई शोधार्थी किसी एक विषय पर काम करना चाहे तो विकीर्ण सामग्री को व्यवस्थित करना बहुत श्रमसाध्य प्रतीत होता है। समणी कुसुमप्रज्ञा ने इस क्षेत्र में एक नया प्रयोग किया है । निष्ठा और पुरुषार्थ को एक साथ संयोजित कर उसने आचार्य तुलसी के साहित्य का एक व्यवस्थित पर्यवेक्षण किया है और प्रायः सभी पुस्तकों के लेखों एवं प्रवचनों को विषयवार प्रस्तुति देने का कठिन काम किया है। इसके साथ कुछ परिशिष्ट जोड़कर शोध का मार्ग सुगम बना दिया है। उसके द्वारा की गई साहित्य की मीमांसा भी पठनीय है । समणी कुसुमप्रज्ञा का श्रम पाठकों और शोध विद्यार्थियों के श्रम को हल्का करेगा, ऐसी आशा है। साध्वीप्रमुखा कनकप्रभा जयपुर २४-३-९४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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