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प्रकाशकीय
गणाधिपति तुलसी बहुआयामी साहित्य के सजनकार हैं। अणुव्रत आंदोलन के प्रवर्तक तुलसीजी एक महान् साधक एवम् आध्यात्मिक युगपुरुष भी हैं। अपने साहित्य के माध्यम से वे मानवीय मूल्यों के प्रति जनचेतना का सृजन अनेक वर्षों से अपनी लेखनी एवम् व्यवहार द्वारा कर रहे हैं। यहां तक कि उनका डायरी-लेखन भी उनके आत्मवादी विचारदर्शन का सांगोपांग अभिलेख है।
उनके व्यापक साहित्य का पर्यवेक्षण करना कोई सहज कार्य नहीं है, बल्कि अत्यन्त दुष्कर भी है। आदरणीया समणी कुसुमप्रज्ञाजी ने गणाधिपति तुलसीजी के साहित्य का पर्यवेक्षण कर एक बड़ी उपलब्धि प्राप्त की है। उनकी इस प्रस्तुति से अध्यात्म एवं साहित्यजगत् समग्र रूप से उपकृत होगा, इसमें कोई सन्देह नहीं है। जैन विश्व भारती इस कृति का प्रकाशन कर गौरव की अनुभूति कर रही है ।
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लाडनूं (राजस्थान) दि० ५-४-१९९४
श्रीचन्द बैंगानो
अध्यक्ष जैन विश्व भारती
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