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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन युवा वह होता है, जो वर्तमान में जीना जानता है। युवा वह होता है, जो परिस्थितियों में जीना जानता है । युवा वह होता है, जो पुरुषार्थ का प्रयोग करना जानता है । युवा वह होता है, जो आत्मविश्वास को बढ़ाना जानता है। युवा वह होता है, जो अनुशासित होकर रहना जानता है।' लोकप्रसिद्ध धारणा का निषेध वे उस धारणा को प्रस्तुत करके करते हैं । उनके इस शैलीगत वैशिष्ट्य के कारण वक्तव्य तो प्रभावी बनता ही है, पाठक की भ्रान्त धारणा का निराकरण भी हो जाता है तथा कथ्य के साथ वह सीधा सम्बन्ध भी स्थापित कर पाता है। शैली के इस वैशिष्ट्य के बारे में 'व्यावहारिक शैली विज्ञान' में भोलानाथ तिवारी कहते हैं कि एक बात का निषेध कर दूसरी बात कहना शैली को आकर्षक बनाता है। इसमें बड़े सहज रूप से दूसरी बात रेखांकित हो उठती है। हिंदी में कुछ ही लेखक इस शैली का प्रयोग करते हैं, जिनमें प्रेमचंद और हजारीप्रसाद द्विवेदी मुख्य हैं। प्रेमचंद 'मानसरोवर' में कहते हैं---"खाने और सोने का नाम जीवन नहीं है । जीवन नाम है सदैव आगे बढ़ते रहने की लालसा का।" साधु-संस्था के बारे में लोगों की अनेक धारणाओं का निराकरण करके नई अवधारणा को प्रस्तुत करने वाली उनकी निम्न पंक्तियां पठनीय हैं.--"साधु भिखमंगे नहीं, भिक्षु हैं। बोझ नहीं, बल्कि संसार का बोझ उतारने वाले हैं । अभिशाप नहीं, बल्कि जगत् के लिए वरदानस्वरूप हैं। वे कलंक नहीं, बल्कि जगत के शृगार हैं। इसी प्रकार शब्द के अर्थ का स्पष्टीकरण भी कभी-कभी वे इसी शैली में करते हैं-- ० विनय का अर्थ दीनता, हीनता या दब्बूपन नहीं, वह तो आत्म विकास का मार्ग है। ० अपरिग्रह का अर्थ यह नहीं कि भूखे मरो, उत्पादन या क्रय-विक्रय मत करो। इसका वास्तविक अर्थ है कि दूसरों के अधिकार छीनकर, प्रामाणिकता और विश्वासपात्रता को गंवाकर, एक शब्द में, अन्याय द्वारा संग्रह मत करो। ७ समर्पण का अर्थ किसी दूसरे के हाथ में अपना भाग्य सौंप देना नहीं, अपितु समर्पित होने का अर्थ है-~-सत्य को पाने की दिशा में प्रस्थान करना। १. बीती ताहि विसारि दे, पृ० ८५ २. अणुव्रती संघ का चतुर्थ वार्षिक अधिवेशन, पृ० १२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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