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________________ गद्य साहित्य : पर्यालोचन और मूल्यांकन सूर्यसम प्रखर तेजस्वी हैं तो चांद की भांति सौम्य भी हैं। सागर के समान गंभीर हैं तो आकाश की ऊंचाई भी उनमें समाविष्ट है। चट्टान की भांति भडिग, अचल हैं तो रबड़ के समान लचीले भी हैं। वज्रवत् कठोर हैं तो फूल से अधिक कोमल भी हैं। इसी भावना का प्रतिनिधित्व करने वाला संस्कृत साहित्य में एक मार्मिक श्लोक मिलता है वज्रादपि कठोराणि, मृदूनि कुसुमादपि । लोकोत्तराणां चेतांसि, को नु विज्ञातुमर्हति ।। उनके व्यक्तित्व की यह विशेषता साहित्य की शैली में भी प्रतिबिम्बित हुई है। दो विरोधों का समायोजन साहित्य का बहुत बड़ा वैशिष्ट्य है। उन्होंने प्रकृतिकृत एवं पुरुषकृत विरोध का सामंजस्य कलात्मक ढंग से प्रस्तुत किया है । महावीर के विरोधी व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति का निम्न उदाहरण दर्शनीय है ___ "वे जीवन भर मुक्त हाथों से ज्ञानामृत बांटते रहे, पर एक बूंद भी खाली नहीं हुए।" धर्म और विज्ञान के विरोधी स्वरूप में सामंजस्य करते हुए उनका कहना है "धर्म और विज्ञान का ऐक्य नहीं है तो उनमें विरोध भी नहीं है। पदार्थ-विश्लेषण और नई-नई वस्तुओं को प्रस्तुत करने की दिशा में विज्ञान आगे बढ़ता है तो आंतरिक विश्लेषण की दिशा में धर्म की साधना चलती - जहां वे एक उपदेष्टा की भूमिका पर अपनी बात कहते हैं, वहां उनकी भाषा बहुत सीधी-सपाट एवं अभिधा शैली में होती है। उनका उपदेश भी पाठक को उबाता नहीं, वरन् मानस पर एक विशेष प्रभाव डालकर जीने का विज्ञान सिखाता है। उपदेशात्मक ध्वनि के वाक्यों की कुछ कड़ियां इस प्रकार हैं--- • 'युवापीढ़ी का यह दायित्व है कि वह संघर्ष को आमंत्रित करे, मूल्यांकन का पैमाना बदले, अहं को तोड़े, जोखिम का स्वागत करे, स्वार्थ और व्यामोह से ऊपर उठे तथा इस सदी के माथे पर कलंक का जो टीका लगा है, उसे अगली सदी में संक्रांत न होने दे।' . . 'मैं देश के पत्रकारों को आह्वान करना चाहता हूं कि वे जन-जीवन को नयी प्रेरणाओं से ओत-प्रोत कर, लूट-खसोट, मार-काट आदि संवादों को महत्त्व न देकर निर्माण को महत्त्व दें। जातीय, सांप्रदायिक आदि संकीर्ण विचारों को उपेक्षित कर व्यापक विचारों का प्रचार करें।' १. बीती ताहि विसारि दे, पृ० ४९ २. एक बूंद : एक सागर, पृ० ७४१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003117
Book TitleAcharya Tulsi Sahitya Ek Paryavekshan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKusumpragya Shramani
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year1994
Total Pages708
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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