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निर्वाण/७९
प्रसन्नता का विषय है, पर संसारी मनुष्य वियोग के व्यवहार को भी भुला नहीं सकता।
गौतम स्वामी को सूचना मिली की भगवान् का निर्वाण हो गया। वे स्तब्ध रह गए। उनका सम्बन्ध अटूट था। भगवान् को पाकर गौतम की चेतना ने त्राण का अनुभव किया और गौतम को पाकर भगवान् की चेतना ने आधार पा लिया। गौतम को भगवान् के शरीर में भी राग था। वे उसका वियोग नहीं चाहते थे। भगवान् की उपस्थिति में उनका राग क्षीण नहीं हुआ। वे कैवल्य को प्राप्त: नहीं कर सके। निर्वाण का संवाद सुनने के साथ-साथ एक बार राग ने तीव्र आक्रमण किया। वे अपने आपको भूल गए, साधारण जन की भांति विहल हो गए। किन्तु यह सब क्षणिक था। वे महाज्ञानी थे और श्रुत सागर के पारगामी तत्त्वद्रष्टा। उन्होंने तीस वर्ष तक भगवान् का सान्निध्य साधा था। उन्होंने अपनी जिज्ञासा को दर्शन के विकास में नियोजित किया। भगवती सूत्र आज भी उसका साक्ष्य दे रहा है। इतना बड़ा ज्ञानी पुरुष शोक नहीं कर सकता। वे तत्काल मुड़े। भगवान् की वीतराग प्रतिमा उनकी आंखों के सामने आ गई। उनका राग क्षीण हो गया। वे वीतराग बन गए। कैवल्य ने उनका वरण कर लिया। अब वे भगवान् के साथ अभिन्न हो गए।
बहत्तर वर्ष की आयु पूर्ण होने पर भगवान् का निर्वाण हुआ। वे तीस वर्ष घर में रहे, साढ़े बारह वर्ष साधना में रहे और तीस वर्ष केवली। गौतम और सुधर्मा जैसे महाप्रज्ञ उनके शिष्य थे। वे अस्सी वर्ष की अवस्था में थे। फिर भी भगवान् के प्रति पूर्ण विनम्र और सर्वात्मना समर्पित । निर्वाण के समय भगवान् का शिष्य-परिवार बहुत बड़ा था और बहुत समृद्ध।
___ भगवान् राजकुल में जन्मे। वैभव में पले-पुसे। जैसे-युवा बने वैसे ही उनका समत्व-चक्षु विकसित हुआ। वे समता की साधना में लगे। उसमें सिद्धि प्राप्त की। वे जनता के बीच रहे। उन्होंने जनता को शान्ति, समता और अनेकान्त का मार्ग-दर्शन दिया। उनका दर्शन केवल व्यक्ति के लिए नहीं, समाज के लिए भी है। उनका धर्म केवल परलोक के लिए नहीं, वर्तमान लोक के लिए भी है। उनकी आधार-पद्धति से आंतरिक समस्याएं ही नहीं सुलझती, समाज-व्यवस्था
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