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________________ धर्मतीर्थ-प्रवचन/५३ on s mi आचारांग सूत्रकृतांग स्थानांग x समवायांग i w आचार और दर्शन। आचार और दर्शन। इसमें एक से दस तक की संख्या में आचार और दर्शन का प्रतिपादन है। इसमें सांख्यिक पद्धति में आचार और तत्त्वदर्शन के विभिन्न विषयों का प्रतिपादन है। तत्त्वशास्त्र-दर्शनशास्त्र आदि। दृष्टांत और कथाएं। श्रावक का आचार-धर्म। मुक्त मनुष्यों का वर्णन। अनुत्तर विमान में उत्पन्न होने वाले मनुष्यों का वर्णन। पांच आश्रवों और पांच संवरों का वर्णन। कर्मफल शास्त्र। नयविद्या। भगवती ज्ञाताधर्मकथा उपासकदशा अन्तकृतदशा अनुत्तरोपपातिदशा - g vai प्रश्नव्याकरण a a विपाक दृष्टिवाद १२. - गौतम की भांति दूसरे विद्वान भी भगवान् की उपासना में गए। उन्होंने भी तत्त्व की जिज्ञासा की। भगवान् ने अनेकान्त का मंत्र देकर उनकी क्षमता को जागृत किया। वे जैसे लौकिक और वैदिक विद्याओं के पारगामी विद्वान् थे वैसे ही आर्हत विद्या के पारगामी विद्वान् हो गए। संघ-व्यवस्था भगवान् महावीर अहिंसा और समता के मंत्रदाता थे। स्वतन्त्रता अहिंसा की निष्पत्ति है। भगवान् ने मुक्ति का मार्ग बताया। उसमें अनुशासन भी है, संयम भी है, पर थोपा हुआ नियन्त्रण नहीं है। भगवान् ने साधु-संघ को नियन्त्रित नहीं किया, किन्तु आत्मानुशासन से अनुशासित किया। उनका १. प्रश्नव्याकरण के प्राचीन रूप में अंगुष्ठ, प्रश्न आदि विद्याओं का वर्णन था। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003115
Book TitleBhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages110
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Principle
File Size5 MB
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