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साधना-काल/३९
की दासी पर इतना अत्याचार हो सकता है, उसे इतना प्रताड़ित किया जा सकता है तब दूसरी दासियों पर न जाने क्या बीतती होगी? यह दास-प्रथा बहुत अन्याय है। यह मानवता के सिर पर कलंक का टीका है। क्या इसे चलाना जरूरी है-इस चर्चा ने इतना उग्र रूप लिया कि समाज का स्थितिपालक वर्ग चिंतित हो उठा। भगवान् महावीर की तपस्या ने जन-मानस को इतना प्रभावित किया कि दासप्रथा की जड़ें हिल गईं। पहला परिणाम चंदना पर आया। वह सदा के लिए दासी-जीवन से मुक्त हो गई।
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