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________________ ४. कैवल्य और धर्मोपदेश साधना की सिद्धि कार्य और कारण में निकट का संबंध है। कोई भी कार्य कारण के बिना निष्पन्न नहीं होता। हम आम के पेड़ को देख रहे हैं। वह आमों से लदा हुआ है। ये आम कहां से आए? इनका उपादान क्या है? इनका निमित्त क्या है? आम के बीज के बिना आम का पेड़ ही नहीं होता तब आम कहां से होंगे? आम का पेड़ है पर ऋतु आदि की अनुकूलता नहीं है तो आम नहीं होंगे। चेतना की ज्योति न हो तो कोई भी व्यक्ति ज्योतिष्मान् नहीं हो सकता। चेतना की ज्योति हो और ध्यान एवं संयम की साधना न हो तो वह प्रकट नहीं होती। भगवान् ध्यान और संयम की साधना से अपनी ज्योति को प्रकट कर रहे थे। इस साधना में बारह वर्ष बीत गए। तेरहवें वर्ष के छह मास पूरे हो गए। सातवां मास चल रहा था। वैशाख शुक्ला दशमी का दिन, चौथा प्रहर। विजय नामक मुहूर्त। उस समय भगवान् भियग्राम के बाहर ऋजुबालुका नदी के उत्तरी तट पर विहार कर रहे थे। वहां श्यामाक नाम के कौटुम्बिक का एक खेत था। उसमें शालवृक्ष था। भगवान् उसके पास गोदोहिक आसन में बैठे सूर्य का आतप लेते हुए ध्यान कर रहे थे। दो दिन का निर्जल उपवास था। इस ध्यान मुद्रा में भगवान् को कैवल्य प्राप्त हुआ। कैवल्य-प्राप्ति के साथ-साथ भगवान् की साधना सम्पन्न हो गई। वे पूर्णत: प्रत्यक्ष-ज्ञानी हो गए। अब उनकी चेतना पर कोई आवरण नहीं रहा। ज्ञेय और ज्ञाता के बीच कोई व्यवधान नहीं रहा। जैसे अपने अस्तित्व का साक्षात् हुआ वैसे ही वस्तु जगत् का साक्षात् हो गया। वे सर्वज्ञ और सर्वदर्शी हो गए। समूचे लोक के सब जीवों और अजीवों के सब पर्यायों को Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003115
Book TitleBhagvana Mahavira
Original Sutra AuthorN/A
AuthorTulsi Acharya
PublisherJain Vishva Bharati
Publication Year2002
Total Pages110
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Children, & Principle
File Size5 MB
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