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________________ मन की शान्ति आज इस वैज्ञानिक युग में मन की शांति का प्रश्न अहं प्रश्न है । मन की समस्याओं पर चर्चाएं चलती हैं। हमें इस सन्दर्भ में यह जानना चाहिए कि हमारा मन किन-किन प्रभावों से कितना प्रभावित होता है । मन क्षेत्र से भी प्रभावित होता है और काल से भी प्रभावित होता है । ज्योतिर्विज्ञान का विकास प्रभावों के विश्लेषण के लिए हुआ था । किन्तु आज उसका रूप बदल गया है । वह केवल फलित में उलझ गया है । उसका मूल विषय तो थाहमारी इस पृथ्वी पर, पूरे वातावरण पर और वायुमंडल पर तथा मनुष्य के स्वभाव पर और व्यवहार पर सौरमंडल का क्या प्रभाव होता है, इसका अध्ययन और विश्लेषण करना, पर वह उससे दूर चला गया । यह स्पष्ट है कि हमारा सारा वातावरण अंतरिक्ष से प्रभवित है । पृथ्वी और अंतरिक्ष को सर्वथा विभक्त नहीं किया जा सकता । मनुष्य की जितनी संपदा पृथ्वी पर है, उससे कम अन्तरिक्ष में नहीं है । मनुष्य पर पृथ्वी का जितना प्रभाव पड़ता है, अन्तरिक्ष का प्रभाव उससे कम नहीं पड़ता | आदमी अन्तरिक्ष से अधिक प्रभावित होता है । अन्तरिक्ष में जैसा सौरमण्डल है वैसा सौरमण्डल प्रत्येक व्यक्ति के शरीर में है । ग्रहों और अन्तरग्रहों का बहुत गहरा संबंध है । हमारे अन्तरग्रह आकाश के ग्रहों के विकिरणों से बहुत प्रभावित होते हैं । मनुष्य जीता है ऋतुचक्र के साथ-साथ । ऋतु का एक चक्र है । भारत में छह ऋतुओं का विकास हुआ | हो सकता है कि भौगोलिक कारणों से कुछ स्थानों में ऋतुएं छह न होती हों, कम होती हों । किन्तु भारत में छह ऋतुएं होती हैं | और उन ऋतुओं से मनुष्य का जीवन जुड़ा हुआ है । जैसे ऋतुचक्र बदलता है, हमारा शरीर भी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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