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८८ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता सुख का विकास
आनन्द केन्द्र पर ध्यान करने से सुख का विकास होता है । ज्ञान का विकास
दर्शन केन्द्र पर ध्यान करने से ज्ञान की उपलब्धि होती है । इससे अन्तर्दृष्टि और प्रज्ञा का सहज जागरण होता है । शक्ति का विकास
स्वास्थ्य केन्द्र या शक्ति केन्द्र पर ध्यान करने से शक्ति का विकास होता है।
इन चैतन्य केन्द्रों पर ध्यान करने से भ्रान्तियों का निवारण होता है और सत्य उपलब्ध होता है | इसका फलित है- वास्तविक स्वास्थ्य, वास्तविक सुख, यथार्थ ज्ञान और यथार्थ शक्ति का विकास ।
प्रश्न था--- साधना किसलिए ?
उत्तर है— निर्जरा के लिए यह अमूर्त की भाषा है । मैंने जो कुछ व्याख्या की वह सारी निर्जरा की ही व्याख्या है | यदि अमूर्त भाषा को नहीं समझते हों तो 'साधना किसलिए' प्रश्न का मूर्त भाषा में उत्तर होगा
साधना है स्वास्थ्य-विकास के लिए | साधना है सुख-विकास के लिए। साधना है ज्ञान-विकास के लिए । साधना है शक्ति-विकास के लिए ।
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