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साधना किसलिए ? | ८७ के लिए अक्रोध, अमान, अमाया और अलोभ फलित हो गया । इसी प्रकार सहिष्णुता, ऋजुता, मृदुता - सारे फलित हो गए ।
जो व्यक्ति वास्तव में ही स्वस्थ होता है, आत्मा में रमण करता है, उसकी वचनसिद्धि स्वतः हो जाती है। वह जो सोचता है, वह घटना घट जाती है । वह जो कहता है वह सिद्ध हो जाता है ।
स्वास्थ्य का लक्षण है - मोहनीय कर्म की जकड़ से छुटकारा पा लेना । सुख का संबंध केवल वेदनीय कर्म से ही नहीं है । उसका संबंध मोहनीय कर्म के विलय से प्राप्त होने वाले स्वास्थ्य से भी है स्वास्थ्य होगा तो सुख की अनुभूति होगी । उस सुख में न अतृप्ति होगी और न असुख की पीड़ा | ज्ञान का संबंध है आवरण - विलय से ।) जो बाहर से ज्ञान आता है वह मात्र हैस्मृति-विकास | स्मृति यान्त्रिक होती है । वास्तव में ज्ञान वह है जिससे हमारी अन्तर्दृष्टि का जागरण होता है, प्रज्ञा का जागरण होता है ज्ञान का यही आदि-बिन्दु है यही ज्ञान अभ्रांत होता है । यही है विधायक ज्ञान | शक्ति के विकास का अर्थ है शुभयोग (करणवीर्य ) की प्रवृत्ति । हम शुभ योग का जितना प्रज्वलन करते हैं, शुभ योग में जितने प्रवृत्त होते हैं, वह है । हमारी शक्ति का विकास । यह है— विधायक शक्ति ।
साधना के क्षेत्र में ये चार आभास हैं— स्वास्थ्य का आभास, सुख का आभास, ज्ञान का आभास और शक्ति का आभास । इनको मूल मान लेना या वास्तविक मान लेना ही भ्रान्ति है । जिस दिन यह भ्रान्ति टूटेगी, उस दिन हमें साधना का अर्थ ज्ञात होगा ।
! साधना का अर्थ है- भ्रान्ति का निराकरण, भ्रान्ति का मिटना, सत्य का उपलब्ध होना, सत्य को जान जाना ।
इन चारों आभासों या भ्रान्तियों को मिटाने के उपाय भी हमारे पास विद्यमान हैं । चारों के लिए भिन्न भिन्न प्रयोग हैं ।
स्वास्थ्य का विकास
ज्योति केन्द्र और शांति केन्द्र दोनों पर ध्यान करने से स्वास्थ्य का विकास होता है | ध्यान का क्रम निरंतर आधा घंटा तक चले और दीर्घकाल तक चले ।
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