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८४ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता
चिकित्सा हैं । कांटा दुःख दे रहा था क्यों चुभा ? किसने चुभाया ? स्वयं ही निकालकर सुख का अनुभव किया । स्वयं ही ने तो भार उठाया था और स्वयं ही ने भार नीचे रखकर सुख का अनुभव किया । स्वयं ही ने तो भूख का निर्माण किया और स्वयं ही ने रोटी खाकर उसे मिटाया । स्वयं ही ने तो उस बीमारी को पैदा किया था और स्वयं ही ने उसकी चिकित्सा कर सुख का अनुभव किया । इस व्याधि-निवारण को, आरोपित भार की मुक्ति को या आरोपित दर्द के निवारण को सुख मानना भ्रान्ति है ।
ज्ञान के विषय में भी हम भ्रान्त हैं । वस्तु-जगत् या पदार्थ-जगत् का ज्ञान कर, पुस्तकीय ज्ञान कर हमने उसे परम ज्ञान मान लिया बाहर से आने वाले आंकड़ों को और स्मृति द्वारा संकलित होने वाले तथ्यों को हमने ज्ञान मान लिया । यही हमारी भ्रान्ति है । यदि इसी आधार पर कोई ज्ञानी होता तो आज की दुनिया में सबसे बड़ा ज्ञानी होता- कम्प्यूटर । उससे बड़ा कोई ज्ञानी आज दृग्गोचर नहीं होता । कम्प्यूटर बहुत बड़ा गणितज्ञ है । वह एक मिनट में जो गणित कर सामने प्रस्तुत करता है, उतने बड़े गणित को करने में आदमी को वर्षों लग सकते हैं । कम्प्यूटर जितनी स्मृति रख सकता है, आदमी पूरे जीवन में उतनी स्मृति नहीं रख सकता । कम्प्यूटर बड़ा चिकित्सक भी है । वह निदान करता है । ओषधि का परामर्श देता है और वह सब कुछ करता है जो एक डॉक्टर करता है । डॉक्टर के परीक्षणों में भूल हो सकती है, पर कम्प्यूटर के परीक्षणों में कभी भूल नहीं होती । वह बड़ा ज्ञानी है। इस प्रकार ज्ञान के विषय में भी हम भ्रान्त हैं।
हमने रुलाने वाली शक्ति को ही शक्ति माना है । कोई एक चांटा मारे और दूसरा उसे दस चांटे जड़ दे तो वह शक्तिशाली माना जाता है । कोई पत्थर मारे और दूसरा रिवाल्वर चलाए तो वह शक्तिशाली माना जाता है | इसका फलित यह है कि जिस व्यक्ति के पास मारने या सताने का शस्त्र अधिक तेज है, तीव्र है- वह शक्तिशाली है । किसी का इतना शोषण करे और उसे इतना सताए कि वह दब जाये, तो शोषण करने वाला सताने वाला शक्तिशाली माना जाता है | यह शक्ति के विषय में भ्रान्ति है।
इस प्रकार आज का आदमी चार भ्रान्तियों से ग्रस्त है— स्वास्थ्य की भ्रान्ति, सुख की भ्रान्ति, ज्ञान की भ्रान्ति और शक्ति की भ्रान्ति ।
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