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जीवन क्या है ? | ८३
को पकड़ लिया । हमने स्वास्थ्य का अर्थ इतना-सा मान लिया हट्टा-कट्टा होना, मांसल होना, चर्बी का होना । इसे ही स्वास्थ्य का लक्षण मान लिया । इसका परिणाम यह हुआ कि प्राणशक्ति को हमने नकार दिया ।
शरीर में दो तत्त्व मुख्य होते हैं— प्राणशक्ति और धातु-संचय | सात धातुएं हैं--- रस, रक्त, मांस, मेद, अस्थि, मज्जा और शुक्र । इनका प्रयोग करने वाली शक्ति है— प्राणशक्ति । एक ऐसी शक्ति है जो मन से काम लेती है, इन्द्रियों से काम लेती है, श्वास से काम लेती है । पुराने जमाने में यह धारणा थी कि जिसका शरीर पुष्ट होता है, चर्बी से भरा-पूरा होता है वह बलिष्ठ होता है | आज शरीरशास्त्र और चिकित्साशस्त्र ने इस भ्रान्ति को तोड़ डाला है । अधिक चर्बी का होना शक्ति का लक्षण नहीं है, स्वास्थ्य का लक्षण नहीं है । यह केवल भ्रान्ति है । इसे तोड़ना है । साधना का एक काम है, स्वास्थ्य विषयक भ्रान्ति को तोड़ना ।
सुख के विषय में भी हम भ्रान्त हैं । हम सुख को भी नकारात्मक मानते हैं । उदाहरण से समझें । एक आदमी के पैर में कांटा चुभा । वह दर्द करने लगा। कोई कशल व्यक्ति आया । कांटा निकाल दिया । वह कहता है, 'ओह ! कितना सुख मिल गया। कितनी शांति हो गई ।' वह तो मानेगा कि सुख मिला, पर यह सुख है कहां? यह सुख नकारात्मक है | कांटा चुभा और उसे निकाल दिया । इसमें सुख क्या हुआ ? कुछ भी तो नहीं मिला । यह है नकारात्मक सुख ।
एक आदमी बोझ लेकर जा रहा है | भार में वह दब रहा है । रास्ते में उसे उतारकर रख दिया; कहता है, बहुत आराम मिला, सुख मिला । पूछने पर भी यही कहता है- आराम कर रहा हूं । यह सुख या आराम क्या हुआ। यह है नकारात्मक सुख ।
भूख लगी । रोटी खायी | भूख मिट गयी । सुख मिला | सुख क्या मिला । भूख एक बीमारी है । उसे मिटाने के लिए रोटी खायी । भूख मिट गयी । आदमी बीमार होता है, दवाई लेता है और ठीक हो जाता है । यह कैसा सुख ? यह विधायक या स्वाभाविक सुख नहीं है, नकारात्मक सुख
इसीलिए अध्यात्म के आचार्यों ने कहा- ये सुख मात्र व्याधि की
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