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________________ साधना किसलिए? प्रश्न पूछा गया- साधना किसलिए? बहुत छोटा-सा विषय है । केवल तीन अक्षरों का विषय है- 'साधना' । इसका छोटा-सा उत्तर होगा, साधना है- 'णिज्जरट्ठाए'- निर्जरा के लिए । प्रश्न का उत्तर आ गया । विषय संपन्न हो गया । जिज्ञासा सामने आयी, प्रश्न सामने आया, उत्तर हो गया । अब कुछ भी शेष नहीं रहा । प्रवचन भी पूरा हो गया । 'णिज्जरट्टाए'- यह शब्द बहुत ही महत्त्वपूर्ण है । माना जा सकता है कि भगवान की साधना का यह उत्कृष्ट लक्ष्य है। साधना का प्रपंच बहुत विस्तृत हो सकता है, पर उसका अंतिम लक्ष्य इस छोटे से शब्द में समा जाता है । यह संक्षेपीकरण की प्रक्रिया है । पुराने जमाने की घटना है । चार विद्वानों ने एक-एक लाख श्लोक के चार महाग्रन्थ तैयार किए और राजा के समक्ष उपस्थित हुए। वे चारों विद्या की चार शाखाओं के प्रणेता थे— आत्रेय वैद्यकशास्त्र का, कपिल धर्मशास्त्र का, वृहस्पति नीतिशास्त्र का और पाञ्चाल कामशास्त्र का । वे अपना-अपना महाग्रन्थ राजा को सुनाना चाहते थे। राजा ने कहा- कहां है इतना समय?. कैसे सुन सकूँगा चारों महाग्रन्थों को ? इन ग्रन्थों को छोटा करो, फिर मैं सुन सकूँगा । चारों अपने-अपने ग्रन्थों को छोटा करने लगे, छोटा किया पर राजा का यही स्वर रहा, 'मुझे इतना समय नहीं मिल पाएगा कि मैं इतना भी सुन सकूँ।' छोटा करते-करते चारों ने चार लाख श्लोक प्रमाण चार महाग्रन्थों को एक अनुष्टप श्लोक में समाहित कर दिया। एक-एक महाग्रन्थ को केवल आठ-आठ अक्षरों में समाहित कर दिया । वह श्लोक इस प्रकार है 'जीर्णे भोजनमात्रेयः, कपिलः प्राणिनां दया । वृहस्पतिरविश्वासः, पाञ्चालः स्त्रीषु मार्दवम् ।। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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