________________
८० / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता
पढ़े नहीं, किन्तु उन्होंने इस प्रकार शंकाओं का समाधान किया, इस प्रकार प्रश्न के उत्तर दिये कि पढ़े-लिखे लोग भी नहीं टिक पाए। कहां से आया वह उत्तर ? कहां से आया समाधान ? –- अन्तर्ज्ञान से ।
तो हम तीसरे नेत्र को खोलने का अभ्यास करें ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org