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अंधकार से प्रकाश की ओर / ७९
दूसरा बोला - चुप ! मौन है, बोले मत तीसरा बोला- अरे ! तूने तो मौन नोड़ दिया । चौथा बोला- एक मैं ही बचा हूं, जिसने मौन नहीं तोड़ा है । एकाग्रता के बिना हमारे मन में इतनी तरंगें उठती हैं, इतने विकल्प उठते हैं कि बड़ी विचित्र स्थिति बन जाती है ।
एकाग्रता की शक्ति का अभ्यास करना सीखें । एक विषय पर मन को टिकाना सीखें | जब दस-बीस मिनट का अभ्यास बन जाए तो महसूस होगा कि यह कितनी बड़ी शक्ति है ।
एक भी आदमी ऐसा नहीं मिलता, परिषद् के बीच नहीं दीखता जो एक मिनट भी एक विषय पर मन को टिकाता हो । एक मिनट में तो न जाने कितने चित्र बदल जाते हैं । कितने चलचित्र सामने गुजर जाते हैं ।
इच्छा शक्ति का विकास, संकल्पशक्ति का विकास और एकाग्रता की शक्ति का विकास — इन शक्तियों का विकास होता है तो ये तीनों शक्तियां हमारे तृतीय नेत्र खोलने लगती हैं । अन्तर्दृष्टि को खोलने लगती हैं । तब अंधकार से प्रकाश की ओर हम जाने लगते हैं ।
यह नहीं होता है तब तक चाहे जितना भी जीवन बीत जाए कितने ही वर्षों तक कुछ करते चले जाएं, अंधकार मिटता ही नहीं । अहंकार मिटता नहीं, ममकार मिटता नहीं ।
लंबी चर्चा की जरूरत नहीं, सार की बात मैंने आपके सामने रखी है । हमारे जीवन का उद्देश्य होना चाहिए अंधकार से प्रकाश की ओर जाना । लोग पूछते हैं । हमारे जीवनका उद्देश्य क्या है ? हमारा लक्ष्य क्या है ? पूछना उचित भी है । निरुद्देशीय जीवन तो मूर्ख जैसा होता है। समझदार आदमी जीवन का कोई लक्ष्य बनाता है। हमारे जीवन का उद्देश्य है— प्रकाश में जाना, प्रकाश की ओर बढ़ना ।
प्रश्न होगा --- इसका उपाय क्या है । उद्देश्य स्पष्ट हो गया कि अंधकार से प्रकाश की ओर जाना है । जाने का साधन भी आपके सामने स्पष्ट है, उक्त तीन शक्तियों का विकास । उन शक्तियों का विकास कर अपने अन्तर्ज्ञान के रास्ते को खोलना । यानी तीसरे नेत्र को खोलना । जैसे-जैसे इन शक्तियों का प्रयोग होगा, अपने आप भीतर से उनके उत्तर मिलते चले जायेंगे । हम जानते हैं. पढ़ते हैं-- आचार्य भिक्षु कभी स्कूल नहीं गये, कभी
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