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७८ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता था । आदमी ने पूछा इस--- मजबूत चट्टान पर किसका आधिकार है ? उत्तर दिया— लोहे का अधिकार है । जब लोहे का हथौड़ा पड़ता है तो घनीभूत पत्थर भी चूर-चूर हो जाता है | फिर आगे पूछा- लोहे पर किसका अधिकार है ? अग्नि का | आग लोहे को पिघला देती है । फिर आगे प्रश्न हुआअग्नि पर किसका अधिकार है ? पानी का | वह आग को बुझ देती है | पानी पर किसका अधिकार है ? हवा का । कितनी ही घनघोर घटा हो, हवा चलती है, बादल बिखर जाते हैं । फिर आगे प्रश्न हुआ- हवा पर किसका अधिकार है । साधक ने कहा- संकल्प शक्ति का। मनुष्य की संकल्पशक्ति ऐसी होती है जो हवा को भी वश में कर लेती है | आदमी श्वास को भी वश में कर लेता है।
संकल्प के द्वारा आदमी श्वास का रोक सकता है । संकल्प के द्वारा आदमी बड़े-बड़े काम कर सकता है । हमारी दूसरी शक्ति है संकल्प की शक्ति | आप प्रयोग कर देखें । ___ कल्पना करें, एक आदमी कमजोर है— मन से या शरीर से बीमार है। किन्तु वह संकल्प करता है कि मैं स्वस्थ हो रहा हूं, मेरा मनोबल बढ़ रहा है । आप आश्चर्य करेंगे दस-बीस दिन प्रयोग कर देखें अपने आपको सुझाव दें सोते-जागते सुझाव दें, बोल-बोलकर सुझाव दें-फिर धीमे-धीमे मानसिक सुझाव दें । दस-बीस दिन में आपको लगेगा कि आपकी शक्ति बढ़ रही है । आपकी कमजोरियां समाप्त हो रही हैं । बहुत बड़ी शक्ति है संकल्प की शक्ति ।
एकाग्रता की शक्ति- यह हमारी तीसरी शक्ति है । हम मन को एकाग्र करना सीखें । एक विषय पर टिकाना सीखें । मौन करना सीखें । मौन के बिना मन को एकाग्र नहीं किया जा सकता । एक बार ऐसा हुआ कि चार आदमी गुरु के पास आए । आकर बोले- गुरुदेव ! हम साधना करना चाहते हैं। हमें मार्ग दर्शन दें। कोई उपाय बताएं । गुरु ने कहा- जाओ, भीतर एक कमरा है, बैठ जाओ और साधना का प्रयोग शुरू कर दो । एक घंटा मौन रहना । फिर दलूँगा । वे बैठ गए । थोड़ा अंधेरा हुआ और रहा नहीं गया । क्योंकि एकाग्रता के बिना मौन संभव नहीं । मन में तरंग उठी और एक बोल पड़ा--- अरे ! अंधेरा हो गया । किसी ने दीया ही नहीं जलाया ।
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