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चेतना रूपांतरण / ७१
समस्याएं हैं । इस दुनिया में जन्म लेने वाला कोई भी प्राणी समस्या से मुक्त नहीं हो सकता | धार्मिक आदमी के सामने भी समस्या है और अधार्मिक आदमी के सामने भी समस्या है । पर एक अन्तर आता है धार्मिक आदमी समस्या को भोगता नहीं, जानता है और अधार्मिक आदमी समस्या को, जानता कम है, भोगता अधिक है । महान वह होता है जो समस्या को, कष्ट को जानता है भोगता नहीं । जो समस्या को भोगता है वह सुख में भी दुःख निकाल लेता है और जो समस्या को जानता है भोगता नहीं, वह दुःख में से भी सुख को निकाल लेता । यही अन्तर है जानने और भोगने में ।
___ ध्यान के अभ्यास से सबसे बड़ा परिवर्तन यह होता है कि आदमी का ज्ञाता-भाव बढ़ता है और भोक्ताभाव धीरे-धीरे कम होता जाता है। यह जीवन का महान परिवर्तन है । लोग कह देते हैं- देखो, इस व्यक्ति ने इतना धर्मकर्म किया, फिर भी दुःख तो भोगना ही पड़ा । मैं पूछता हूं क्या धर्म करने वाला जागतिक नियमों से अलग रह जाएगा? यह जगत् का नियम है कि जो भी इस जगत् में जन्म लेगा, उसे दुःख भोगना पड़ेगा, सुख भोगना पड़ेगा। सब कुछ करना पड़ेगा । फर्क क्या पड़ा ! अन्तर इतना ही आएगा कि ध्यान का अभ्यासी व्यक्ति या धर्म को जीवन में घटित करने वाला व्यक्ति दुःखसुख जान लेगा, भोगेगा नहीं। वह दुःख में म्लान नहीं होगा और सुख में फूलेगा नहीं । वह हंसते-हंसते आपत्तियों को झेल लेगा, कष्टकाल को बिता देगा, पर उसके सामने घुटने नहीं टेकेगा । एक अधार्मिक व्यक्ति, जिसने न जन्म की सच्चाई को समझा है और न मृत्यु की अनिवार्यता को जाना है, वह राई जितनी समस्या को पहाड़ जितनी बड़ी बनाकर भोगेगा,दुःखी होगा।
ज्ञान की शक्ति है मुक्ति की शक्ति और संवेदन की शक्ति है भुक्ति की शक्ति । मुक्ति और भुक्ति– ये दो शब्द हैं । मुक्ति का अर्थ है मुक्त होना और भुक्ति का अर्थ है भोगना । एक श्रृंखला है- इन्द्रिय, संवेदन और मुक्ति । दूसरी श्रृंखला है--- इन्द्रियातीत जगत्, ज्ञान और मुक्ति । ध्यान से दूसरी श्रृंखला पुष्ट होती है और पहली शृंखला क्षीण होती है ।
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