________________
चेतना रूपांतरण | ६७
का संयम भी व्यर्थ चला जाता है । तीनों साथ जुड़े हुए हैं । अतीत, वर्तमान और भविष्य को तोड़ा नहीं जा सकता । तीनों की एक पूरी श्रृंखला है । यदि यह श्रृंखला पूरी होती है तो आदत बदल सकती है, स्वभाव में परिवर्तन आ सकता है।
आदत और स्वभाव यदि न बदले तो हमारी सारी आराधना निकम्मी हो जाती है । यदि धर्म के द्वारा रूपान्तरण घटित न हो तो वैसे धर्म से क्या होना जाना है ! धर्म की सार्थकता हमारे लिए तभी है जब हम जैसे हैं उससे और अधिक अच्छे बनें, परिष्कृत बनें ।
यह त्रिसूत्री प्रक्रिया रूपान्तरण की प्रक्रिया है— अतीत का शेधन, वर्तमान का संयम और भविष्य का प्रत्याख्यान ।
हमारे सामने दो प्रकार का जगत है- इन्द्रिय जगत और इन्द्रियातीत जगत् । हमारा पूरा विश्वास इन्द्रिय जगत् में है । क्योंकि वह हमारे प्रत्यक्ष है । उससे हमारा सीधा संबंध है । उसके प्रति हमारी इतनी गहरी आस्था बन गई है कि इन्द्रियातीत की कोई बात सामने आ जाती है तो भी उस पर विश्वास नहीं होता । वह समझ में नहीं आती । इन्द्रियों से परे का जगत् बहुत विराट है । इसका पूरा साक्ष्य है आज का विज्ञान | विज्ञान ने सूक्ष्म उपकरणों के माध्यम से ऐसे जगत् को खोजा है जो इन इन्द्रियों द्वारा नहीं जाना जा सकता। जो चीज़ आंखों के द्वारा नहीं देखी जा सकती, वह माइक्रोस्कोप के द्वारा देखी जा सकती है। विज्ञान ने इतने सूक्ष्म जगत् का पता लगा लिया है कि जिसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती । एक सूई की नोक पर अरबों-खरबों परमाण समा जाते हैं | यह विज्ञान की बात है। दार्शनिक जगत् की बात तो और सूक्ष्म है । उसके अनुसार सूई की नोक पर अनन्त जीव समा सकते हैं । अनन्तकायिक वनस्पतियां इसका प्रमाण हैं । यह बहुत सूक्ष्म अन्वेषण है । वैज्ञानिक प्रयोगों के माध्यम से तथा सूक्ष्म उपकरणों के माध्यम से जो देखा गया वह यह है कि एक कण भूमि में बीस हजार कीटाणु समा जाते हैं। बहुत विराट् है सूक्ष्म जगत्, किन्तु इन्द्रिय जगत् के प्रति हमारे कुछ दार्शनिकों और तार्किकों की इतनी प्रगाढ़ आस्था हो गई कि वे इन्द्रियातीत को अवास्तविक मानने लग गये ।
एक व्यक्ति ने अंधे आदमी से कहा- कांच कितना चमकता है |
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org