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६६ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता दोनों ओर से ओषथि की व्यर्थता है, मूल बात है पथ्य की । एक आदमी सुगर की बीमारी से ग्रस्त है । वह दवाई लेता है, किन्तु छककर मिठाई भी खाता है, चावल और आलू भी खाता है तो उसकी बीमारी उस दवाई से कैसे मिटेगी ! किसी को हार्ट ट्रबल है और वह चिकनाई नहीं छोड़ता, प्रोटीन नहीं छोड़ता, रसाल खाता जाता है तो बेचारी दवाई क्या करेगी ! इससे दवाई बदनाम होती है । वह भी सोचती है कि यह आदमी मुझे बदनाम किए जा रहा है । डटकर खा रहा है और दवाई भी लेता जा रहा है । बेचारी दवाई क्या करेगी !
वर्तमान का पथ्य होना चाहिए, यही संयम है । यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण बात है । भाव-परिवर्तन के लिए वर्तमान का संयम अत्यन्त अपेक्षित है । वर्तमान में अच्छे भाव रहें । प्रेक्षाध्यान का एक घंटे का प्रयोग वर्तमान के संयम का प्रयोग है, वर्तमान की शुद्धि का प्रयोग है । जब प्रेक्षाध्यान में व्यक्ति श्वास-दर्शन करता है तब वह राग-द्वेष से मुक्त क्षण का अनुभव करता है । न उसमें प्रियता का भाव आता है और न अप्रियता का भाव आता है । वह केवल श्वास का अनुभव करता है । वर्तमान का क्षण शुद्ध क्षण होता है । प्रामाणिकता, अहिंसा और सत्य का क्षण होता है । अहिंसा का अर्थ हैराग-द्वेष से मुक्त क्षण में जीना । श्वास का अनुभव इसी क्षण का अनुभव है, इसलिए यह अहिंसा का क्षण है, सत्य और आस्था का क्षण है । वर्तमान का संयम यही है । उसमें न बुरे विचार आते हैं और न अनिष्ट भावना आती है । न राग का भाव और न द्वेष का भाव । श्वास के प्रति हमारा कोई राग नहीं होता, शरीर के प्रकम्पन के प्रति हमारा कोई राग नहीं होता । ये दोनों अत्यन्त विशुद्ध आलंबन हैं । इन आलंबनों के द्वारा वर्तमान का संयम सधता है और तब रागमुक्त क्षण और द्वेषमुक्त क्षण का अनुभव होता है ।।
तीसरा आलंबन है—'अणागयं पच्चक्खामि'- भविष्य के लिए प्रत्याख्यान करना । अतीत का शोधन कर लिया,वर्तमान का संयम भी सध गया, किन्तु दोनों के साथ-साथ हमारी संकल्पशक्ति भी दृढ़ होनी चाहिए कि मैं भविष्य में वैसा आचरण नहीं करूंगा, वैसी भावना नहीं करूंगा, वैसा व्यवहार नहीं करूंगा । यह भविष्य का प्रत्याख्यान है। जब तक भविष्य का
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