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________________ ६४ / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता हैं । उनका निरंतर संरक्षण और पोषण करते हैं । उसके रहते हुए हम अपना शोधन करें, नया निर्माण करें, नया भाव और विचार बनाएं, नया व्यवहार और आचरण करें, यह दुरूह बन जाता है । हमें मूल पर ध्यान देना होगा। जैसे कोई आदमी ठिगना है, नाटा है। डॉटर कहेगा कि जो हारमोन्स लंबाई के घटक होते हैं, वे इस आदमी में नहीं हैं, इसलिए यह नाटा है । वह उसके नाटेपन को दूर करने के लिए एच० जी० एच० (Human Growth Harmon) का प्रयोग करेगा और धीरे-धीरे उस व्यक्ति का नायपन दूर होता जाएगा । यह हारमोन्स इन्जेक्ट किए जाते हैं और आदमी की ऊंचाई कुछ बढ़ जाती है। जब कमी की पूर्ति होती है तो काम बन जाता है । भाव परिवर्तन की प्रक्रिया में भी यह देखना पड़ता है कि किस तथ्य की कमी है कि प्रयत्न करने पर भी भाव नहीं बदल रहे हैं। आदमी के चाहने पर भी परिवर्तन घटित नहीं हो रहा है । कुछ चाहते हैं कि हम अच्छे आदमी बनें । मन में कभी बुरे विचार न आएं। बुरी भावना न आए | संकल्प मजबूत हो । निश्चय दृढ़ ह। बात-बात में विचलन न हो । मुंह से गाली न निकले । समय आने पर भी हाथ न उठे । सब ऐसा चाहते हैं । पर चाहने मात्र से कुछ नहीं होता। यदि चाहने मात्र से सब कुछ हो जाता तो आज दुनिया का रूप ही दूसरा होता । आज वह स्वर्ग बन जाती । पर चाहने मात्र से परिवर्तन नहीं होता। चाह न कामधेनु है, न चिन्तामणि रत्ल है और न कल्पवृक्ष है । साहित्य में से तीन शब्द प्राप्त है । कल्पवृक्ष वह है जिसक नीचे खड़े रहकर जो कल्पना की जाती है, वह फलित होती जाती है । कामधेनु वह गाय है, जो आदमी की सभी कामनाओं को पूरा कर देती है । चिन्ताम्माणि बाह पदार्थ है जो आदमी के चिन्तन को फलवान् बना देती है । इन तीनों शब्दों के साथ जुड़ी हजारों कहानियां भारतीय साहित्य में हैं। ये सब यथार्थ हैं या अयथार्थ, हम इस प्रश्न में न उलझें । भाव परिवर्तन के लिए हमें एक प्रक्रिया से गुजरना पड़ेगा । वहां ये तीनों कार्यकर नहीं होंगे। वह प्रक्रिया यह है कि हमें सबसे पहले अतीत के संस्कारों का प्रतिक्रमण करना होगा। जो बीमारी संचित कर रखी है, उसका शोधन या विरेचन करना होगा। पुराने जमाने में विरेचन कराया जाता था । बीमारी से छुटकारा पाने का यह Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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