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चेतना रूपांतरण | ६३
का प्रतिक्रमण करना, वर्तमान का संयम करना और भविष्य का प्रत्याख्यान करना—ये जब तीनों साथ होते हैं तब बदलने की संभाव्यता होती है । प्रत्येक व्यक्ति में बदलने की क्षमता है, वह बदल सकता है । ये तीनों बातें होती हैं तब बदलना प्रारंभ हो जाता है ।
__ पहली बात है— अतीत का प्रतिक्रमण । अतीत में जो कोई विचार आया, संस्कार जमा, भाव उत्पन्न हुआ, कर्म किया, उसका प्रतिक्रमण करने से शोधन हो जाता है । उससे बचने की बात प्राप्त होती है । भाव की तरंगें बहुत सूक्ष्म होती हैं । वे विचार की तरंगों को पैदा करती हैं | विचार की तरंगें काम की तरंगों को पैदा करती हैं। एक आदमी, कोई काम करता है । वह करता है, यह प्रत्यक्ष है, सबके सामने है। पर वह ऐसे ही इस कार्य में प्रवृत्त नहीं हुआ है | उसके पीछे अतीत की विचार तरंगें काम करती हैं। यह एक पूरी श्रृंखला है--- भाव, विचार और कर्म । प्रति पल नये-नये भाव
पैदा होते रहते हैं । भाव पैदा होते ही विचार पैदा हो जाएगा | विचार पैदा हुआ और कर्म करने की बात सामने आ जाएगी । शरीरशास्त्रीय भाषा में पहले सेन्सरी नर्वस सक्रिय होते हैं और फिर मोटर नर्वस सक्रिय होते हैं । पहले ज्ञानतंतु सक्रिय होते हैं और फिर कर्मतंतु सक्रिय होते हैं । इन दोनों का संबंध जुड़ा हुआ है । एक अंगुली भी हिलती है तो पहले ज्ञान तक संदेश पहुंचता है और फिर मस्तिष्क शीघ्र ही कर्म-तन्तुओं को आदेश देता है, कि अंगुली को हिलाना है । तब अंगुली हिलती है । यह पूरी प्रक्रिया चलती है ।
यदि शोधन करना है तो हमें पूरी जागरूकता के साथ इस बात पर ध्यान देना होगा कि कहां क्या कमी है । और उस कमी का परिष्कार कैसे किया जा सकता है । जो एक संस्कार बन गया, वृत्ति बन गई, संज्ञा बन गई, उसे कैसे मिटाया जा सकता है | जब तक अतीत की वृत्ति नहीं मिटेगी तब तक कोई भी नया काम प्रारम्भ किया जाएगा तो वह बीच में रुक जाएगा। क्योंकि भीतर की वृत्ति अवरोध उत्पन्न करेगी। कोई भी किराएदार जब तक घर पर कब्जा किए. बैठा है, तब तक उस स्थान पर नया भवन नहीं बनाया जा सकता । वर्षों से वह किराया दे रहा है, अतः उसे सहजतया निकाल पाना भी संभव नहीं होता । जब तक किसी युक्ति से उसे नहीं हटाया जाता तब तक नया निर्माण नहीं हो सकता । हमने भी अनेक किराएदार पाल रखे
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