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चेतना का रूपान्तरण : १/५९
छोड़कर दूसरी समस्या को सुलझाने में लग जाता है । परसों फिर तीसरीचौथी समस्या में फंस जाता है । वह निरन्तर एक समस्या से दूसरी समस्या पर छलांग लगाता रहता है । कहीं स्थिर नहीं रहता । इसीलिए कोई समस्या समाहित नहीं होती । वह इतना व्यग्र है कि समस्या को अन्त तक सुलझाने के लिए उसमें लगे रहना नहीं चाहता, नहीं जानता | यह स्वयं एक समस्या है । समस्या का अन्त तब होता है जब व्यक्ति उसको पूरी सुलझाए बिना नहीं छोड़ता । बीच में उससे नहीं हटता । व्यग्रता से समस्या और अधिक उलझती है। __चंचलता को बदलना होगा । उसके लिए निर्दिष्ट प्रयोग करने होंगे, तभी समस्याओं का अन्त होगा, अन्यथा नहीं । श्वास-दर्शन इसका अचूक उपाय है | इसे छोटा न समझा जाए | जब श्वास-दर्शन में आदमी लग जाता है तब वह सभी स्मृतियों, कल्पनाओं और चिन्तनों से मुक्त हो जाता है । उसके विकल्पों का दायरा सिमटकर, केवल श्वास पर आ जाता है । परिधि कम हो जाती है | ज्यों-ज्यों परिधि सिमटती है, केन्द्र की निकटता बढ़ती है। परिधि जितनी छोटी होगी, केन्द्र उतना ही निकट होगा । श्वास-दर्शन से केन्द्र की निकटता साधी जा सकती है। ___ श्वास-दर्शन से चंचलता कम हो जाती है और चंचलता के कम होने पर आवेश कम हो जाता है । जितनी चंचलता, उतना आवेश । श्वास स्थिर होगा तो आवेश कम हो जाएगा । जब भी आवेश की स्थिति बने, क्रोध उतरे, तब क्षण-भर के लिए श्वास को स्तर कर लो, कुंभक की स्थिति बना लो, आवेश शान्त हो जाएगा। सारी सक्रियता या चंचलता श्वास के माध्यम से होती है । प्राणधारा का प्रतिनिधित्व करता है श्वास । श्वास को मंद या दीर्घ करते ही आवेश की स्थिति समाप्त हो जाती है ।
श्वास-दर्शन का यह आलम्बन ऐसा है जिससे चंचलता कम होती है । चंचलता कम होती है तो आवेश समाप्त होता है । इससे प्रमाद भी कम होने लगता है, क्योंकि जैसे-जैसे श्वास के प्रति जागरूकता बढ़ती है वैसे-वैसे स्मृति तीव्र होती है, प्रमाद कम होने लगता है । विस्मति प्रमाद को पैदा करती है। विस्मृति का स्वभाव बदलने लगेगा और जागरूकता का स्वभाव निर्मित होगा। इन तीन के बदलने पर चौथा स्वभाव-आकांक्षा का भी परिवर्तित होने
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