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चेतना का रूपान्तरण : १/५५
पास हैं | सारे महान तत्त्व आपके पास हैं। उन्हें खोजने के लिए अन्यत्र जाना बेकार है । केवल बदलने की जरूरत है । यदि रूपांतरण घटित होता है तो सब कुछ यहीं प्राप्त हो जाता है । यदि बदलाहट नहीं होती है तो कहीं भी कुछ मिलने वाला नहीं है । बिना बदले कौआ. इन्द्रलोक में चला गया, पर मिला तिरस्कार ही।
नोहर में मैं प्रवचन कर रहा था । विषय था-तीसरा नेत्र । प्रवचन पूरा हुआ | हम संतगण अपने स्थान पर जा रहे थे । एक स्थान पर एक प्रौढ़ महिला ने हमारा मार्ग रोक लिया | उसकी आंखों में आंसू थे । वह हाथ जोड़कर बोली- 'महाराज ! म्हारी तीजी आंख खोल दो । म्हने सांवरिये रा दर्शन करा दो ।' उस समय वह सहज भाव-मुद्रा में थी। स्वाभाविकता और सहजता उसके मुख से टपक रही थी। कहीं कृत्रिमता नहीं थी | मैंने पूछा'क्या चाहती हो ?' उसने कहा—संसार में सब कुछ है । अब मैं सांवरिये रा दर्शन करना चाहूं हूं । म्हारी तीजी आंख खोल दो । म्हारो तीजो नेत्र उघाड़ दो । थे संत हो । देरी मत करो । एक बार सांवरिये रा दर्शन कराय दो । मैं जनम-जनम में थांरो उपकार कोनी भूलूं ।' ___मैंने उसकी तरफ देखकर पैर रोके । मैंने कहा- 'बहन ! तुम्हारे दो आंखें हैं । जब तक ये दोनों आंखें बन्द नहीं होंगी तब तक तीसरी आंख खुलेगी नहीं । और जब तक तीसरी आंख खुलेगी नहीं, तब तक सांवरिये के दर्शन नहीं होंगे ।' उसने पूछा-'महाराज ! ये दोन्य आंख्यां बंद कियां करूं?'
मैंने कहा- 'देखो, हमारी एक आंख है प्रियता की और दूसरी आंख है अप्रियता की । इस संसार में या तो प्रियता की आंख से देखते हैं या अप्रियता की आंख से देखते हैं । दो ही संवेदन होते हैं हमारे । एक है प्रियता का संवेदन
और दूसरा है अप्रियता का संवेदन । इसके अतिरिक्त कुछ नहीं देखते । यदि तुम आज से प्रियता की आंख को भी बन्द कर लो और अप्रियता की आंख को भी बन्द कर लो और तीसरी आंख जो समता की है उसे खोल दो, सांवरिया पास में खड़ा दिखाई देगा | इन दो आंखों के बन्द होने पर तीसरी आंख अपने आप खुल जाएगी उसे खोलने के लिए प्रयत्न नहीं करना पड़ेगा। दो आंखों को बंद करने का प्रयत्न अवश्य करना होगा, पर तीसरी आंख के उद्घाटन
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