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चेतना का रूपान्तरण : १/५३
इसलिए कि कोरा ज्ञान बचे, संवेदन न रहे । कोरा ज्ञान, ज्ञान के अतिरिक्त कुछ भी नहीं। कोरा जानना । जहां केवल अनुभव करना होता है, देखना होता है, वहां न स्मृति होती है, न कल्पना होती है और न चिन्तन होता है। वह है केवल दर्शन, कोरा साक्षात्कार है उसमें । सीधा सम्बन्ध जुड़ता है हमारा उसके साथ | जैसे-जैसे इस केवल दर्शन का विकास होगा, वैसे वैसे रूपांतरण की क्षमता अधिक अर्जित होती जाएगी और तब व्यक्ति बदलने में सक्षम हो जाएगा। - बदलना है । प्रत्येक व्यक्ति को बदलना है। बदले बिना जो हम चाहते हैं वह नहीं मिलता । न धर्म मिलता है, न आत्मा और परमात्मा ही मिलता है। कुछ भी नहीं मिलता । मन की शान्ति भी नहीं मिलती । बदलना जरूरी
एक कौआ तेजी से उड़ता हुआ चला जा रहा था। पेड़ पर कोयल बैठी थी। उसने पछा“भैया! आज इतने उतावले क्यों हो रहे हो? क्या बात है ?" कौआ बोला—“बहन ! क्या कहूं? जहां भी जाता हूं दुत्कार मिलती है, उड़ा दिया जाता हूं, कहीं सत्कार नहीं मिलता । यहां मेरा कोई आदर नहीं करते, इसलिए मैं इस देश को छोड़कर विदेश जा रहा हूं | वहां मैं अपरिचित रहूंगा । सब मेरा सम्मान करेंगे। कोयल ने कहा—'भैया ! बात तो ठीक है | पर तुम विदेश जा रहे हो, तो अपनी बोली बदलते जाना | कांव-कांव को बदल देना । इसको बदले बिना विदेश में भी तुम्हें आदर नहीं मिलेगा। यहां जो तुम्हारे प्रति घृणा है, वह इस वाणी के कारण ही है। इस कर्कश और रूखी ध्वनि को बदल दो, फिर कहीं चले जाओ, सर्वत्र सम्मान होगा।"
बदले बिना कुछ भी नहीं होता । यदि कुछ होना है तो बदलना होगा।
कोयल के गले में हार देखकर कौवे का मन ललचा उठा उसने पूछा"बहन ! यह उपहार तुम्हें कहां से मिला?' उसने कहा—'मैं इन्द्रलोक में गई थी, वहां मैंने अपना माना सुनाया। मेरे गायन को सुनकर सुरपति प्रसन्न हुआ और उसने मुझे हार दिया है। कौवे को युक्ति पसन्द आ गई। उसने सोचा-कोरा गाना सुनाने मात्र से यदि हार मिलता है तो मैं भी जाऊं, गाना सुनाऊं और हार ले आऊं। वह उड़ा । सीधा स्वर्गलोक गया । इन्द्र से बोला
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