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________________ ५० / मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता हारमोन्स काम करते हैं, इनकी सक्रियता से आदमी के व्यक्तित्व का, भाव का और विचार का निर्माण होता है । इस पूरी प्रक्रिया को समझ लेने के बाद साधना की बात ठीक समझ में आ जाती है । कहना यह चाहिए कि जिस व्यक्ति ने शरीर को समझने का प्रयल नहीं किया, वह न आत्मा को समझ सकता है और न परमात्मा को समझ सकता है । वह मनुष्य और प्राणी जगत के सम्बन्ध को भी नहीं समझ सकता । कुछेक व्यक्ति आते हैं और सीधा पूछते हैं—आत्मा क्या है ? परमात्मा क्या है ? मैं कहता हूं, आत्मा को जानना है, परमात्मा को जानना है तो सबसे पहले अपने शरीर को जानो । जब तक तुम अपने शरीर को नहीं जान सकोगे, तब तक न आत्मा को जान सकोगे, न परमात्मा को जान सकोगे । यह बहुत आगे की बात है । पहले शरीर को जानो । यह प्रवेशद्वार है । यदि हम इसमें अच्छी तरह से प्रवेश पा लेते हैं तो आत्मा-परमात्मा तक पहुंचने की संभावना कर सकते हैं । यदि प्रवेशद्वार में ही अटक जाते हैं तो फिर अंदर जाने का प्रश्न ही नहीं होता। प्रेक्षा ध्यान का घोष है— 'आत्मा के द्वारा आत्मा को देखो ।' यह घोष प्रश्न पैदा करता है—आत्मा को कहां देखें ? देखने वाला द्रष्टा भी अमूर्त और दृश्य भी अमूर्त । यह कैसा योग? यह प्रश्न होता है, संदेह होता है । पर हम इसे समझें । श्वास को देखना आत्मा को देखना है, शरीर को देखना आत्मा को देखना है । यह प्रेक्षा की प्रक्रिया आत्म-दर्शन की प्रक्रिया है । जिसने श्वास को नहीं देखा, वह आत्मा को नहीं जान सकता । जिसने शरीर को नहीं देखा, वह परमात्मा को, आत्मा को नहीं जान सकता । आत्मा-परमात्माये दो सूक्ष्म तत्त्व हैं । हमारी दृष्टि तो बहुत ही स्थूल है । क्या स्थूल से सूक्ष्म जाना जा सकता है ? कभी संभव नहीं। सूक्ष्म को सूक्ष्म के द्वारा ही जाना जा सकता है । स्थूल के द्वारा सूक्ष्म को जानने का प्रयास करना विरोधाभास है, विसंगति है | कभी सफल नहीं हो सकता । सूक्ष्म को जानने के लिए चित्त को सूक्ष्म करना होगा । जैसे-जैसे चित्त सूक्ष्म होता जाएगा, वैसे-वैसे चेतना स्थूलता से परे होकर सूक्ष्मता की सृष्टि में विचरण करने लगेगी और तब सूक्ष्म तत्त्व ज्ञात होते जाएंगे । आज सबसे बड़ी कठिनाई यही है कि आज का आदमी सूक्ष्म का अभ्यास किए बिना ही केवल शब्दों के द्वारा, केवल Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003111
Book TitleMain Hu Apne Bhagya ka Nirmata
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year2000
Total Pages274
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size12 MB
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