________________
चेतना का रूपान्तरण :: 9 | ४९
शरीर शास्त्रीय चर्चाओं के परिप्रेक्ष्य में वे चर्चाएं अप्पर्याप्त-सी लगती हैं। आजा शरीरशास्त्र ने शरीर के इतने तथ्य अनावृत किए हैं, जिन्नका जनावरप्या प्राचीन काल में नहीं हुआ था । जब से जीवाणु का सिद्धान्त, जीवन और प्रोमोसोम का सिद्धान्त, डी० एन० ए० आदि रसायनों का सिद्धान्त सामने आया है, उससे सूक्ष्म जगत् की अद्भुत परिकल्पनाएं प्रस्त हुई हैं । पच्चीस हजार जीया ज्ञात कर लिये गए हैं। इन जीवाणुओं के 'जीन' के माध्यम से विलक्षण कार्य सम्पन्न किए जा सकते हैं।
आज जीवन की ऐसी शृंखला ज्ञात कर ली गई है, जिससे आदमी की बदला जा सकता है, स्वभाव और जीवन को बदला जा सकता है, मस्त को बदला जा सकता है । 'बायोटेक्नोलॉजी' और 'जीन इंजीनियरिंगा' के माध्यम से नयी-नयी अवधारणाएं सामने आने लगी हैं। ये जानकारियां प्राचीन ग्रन्थों में बहुत कम हैं । यह एक सर्वथा नया क्षेत्र उद्ध्याटित हुआ है ।
आज शरीर के इतने रहस्य, इतनी सूक्ष्म पद्धत्तियां और इसने नियम ज्ञात हो गए हैं कि उन सबके आधार पर परिवर्तन्न और रूपान्तरणा समत्त हो गया है।
जीन के रूपान्तरण का अर्थ होता है पूरे व्यक्तित्व का रूपान्तरप्पा । एक जीन बदलता है और उस आनवंशिकी यांत्रिकी के द्वारा प्तरंगी जाति का स्वभाव ही बदल जाता है । यह परिवर्तन की बात सर्वथा नयी नहीं है, किन्तु उसकी विशद व्याख्या और विशद जानकारी आज हमें उपलब्ध है || इसीलिए मौन्ने कहा कि मैं किसी पुराने ग्रन्थ का आग्रह नहीं रखत्ता । याह नहीं कहता कि हमारी साधना उसी के आधार पर चले, किन्तु वर्तमान्न की जानकारी और वर्तमान के विकास के माध्यम से हम आगे बढ़े। इस्सस्से हम अधिक लाभान्वित हो सकते है । केवल दृष्टिकोण का अन्तर होता है । एक शारीरशास्त्री और मानसशास्त्री परिवर्तन की बात भौतिक सीमा के अन्तर्गत्ल सोन्यता है और एक अध्यात्मशास्त्री उसे भावतरंगों की सीमा में ले जाता है ||
यह शरीर कुछेक रसायनों से निष्पन्न पिंड है । प्राचीन्स भाषा में इसे सप्तधातुमय माना जाता है। आज यह मान्यता त्यदल्म युकी है। ज्यादा का शरीरशास्त्री शरीर को धातु, लवण, क्षार और रस्साव्यमों से छान्मा हुमा मासत्ता है। इसकी प्रक्रिया बहुत जटिल है, गहरी है। इस शारीर में एन्जाइप्स., रस्सास्थ्यम,
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org