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४८ | मैं हूं अपने भाग्य का निर्माता निर्वचन नहीं हो सकता | शब्द सीमित हैं । प्रत्येक घटना और प्रत्येक अवस्था का निर्वचन करने वाले शब्द हमारे पास नहीं हैं । दिन में एक व्यक्ति लाखोंकरोड़ों अवस्थाओं में जी लेता है । प्रतिक्षण अवस्था बदलती रहती है । कोई भी ऐसा क्षण नहीं होता, जिसमें अवस्था का परिवर्तन न होता हो । उन सारी अवस्थाओं को अभिव्यक्ति देने वाले शब्द हैं कहां ?
हम व्यक्त अवस्थाओं को पकड़ते हैं, स्थूल रूपान्तरणों को जानते हैं। उनको हम स्थूल भाषा के माध्यम से स्थूल अभिव्यक्ति देते हैं । किन्तु जब सूक्ष्म जगत् को जानें तो वहां का लेखा-जोखा इतना विचित्र है कि वहां भाषा भी समाप्त हो जाती है और सभी शब्दकोशों के सारे शब्द अकर्मण्य बन जाते हैं । उनको अभिव्यक्ति देने वाला कोई शब्द प्राप्त नहीं होता |
इतना होने पर भी हम सूक्ष्म जगत् की चर्चा इसलिए कर रहे हैं कि हम सूक्ष्म परिवर्तनों को जान सकें और सूक्ष्म परिवर्तन की प्रक्रिया को पकड़ सकें।
सबसे पहले हमें यह स्थूल शरीर दिखाई देता है । यह शरीर केवल स्थूल पदार्थों का ही पिण्ड नहीं है । इस शरीर के साथ सूक्ष्म जगत् का घना सम्बन्ध है । हम बाहर की चमड़ी को देखते हैं । हमारा उससे सम्बन्ध जुड़ जाता है और हम वहीं अटक जाते हैं। यदि कोई व्यक्ति चमड़ी को या अन्य अवरोधकों को पार कर भीतर प्रवेश करे तो उसे ज्ञात होगा कि भीतर में सूक्ष्म जगत् इतना विराट् है कि जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती।
एक प्रोफेसर ने अभी-अभी पूछा था- 'क्या आपका योग पातंजल योग के आधार पर है ?' मैंने कहा- 'उत्तर देना कठिन है । पातंजल योग भी एक प्रणाली है और प्रेक्षा ध्यान भी एक प्रणाली है । यह किस ग्रन्थ पर आधारित है, यह बता पाना मेरे लिए कठिन है । इसलिए कठिन है कि ग्रंथों के आधार पर या किसी विशेष ग्रन्थ के आधार पर योग को समझा नहीं जा सकता । जितने पुराने ग्रन्थ है उनमें सांकेतिक भाषा बहुत हैं, स्पष्टताएं कम हैं । हमने विज्ञान के माध्यम से जो कुछ बातें समझी हैं, वे बातें पुराने ग्रन्थों के आधार पर नहीं समझी जा सकतीं। फिर चाहे वह पातंजल योग दर्शन हो या अन्य कोई योग का ग्रन्थ हो ।
शरीर के विषय में ध्यानी योगियों ने बहुत चर्चाएं की हैं, पर वर्तमान
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